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इटावा/जसवंतनगर: भगवान शंकर ने सती का किया त्याग फिर क्या हुआ जानिए।

 संवाददाता: एम.एस वर्मा, इटावा ब्यूरो चीफ, सोशल मीडिया प्रभारी, 6397329270

  मनोज कुमार जसवंतनगर


राम लीला मैदान में हो रही राम कथा का आज दूसरा दिन था
.

मधुर कथा बाचिका परमपूज्या कृष्णाप्रिया पूजा दीदी जी ने अपनी मधुर बाणी से सती त्याग का प्रसंग सुनाया.

बताया ज़ब सीता हरण हो गया तो श्रीराम सीता जी को बन बन ढूढ़ते हुये मारे मारे फिर रहे है. उन्होंने अपनी सुध बुध खो दी है. जिनसे उन्हें नहीं पूछना चाहिए था बो उनसे भी सीता के बारे में पूछते फिर रहे है.


हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी, तुम देखी सीता मृग नयनी.

श्री राम को एक साधारण मनुष्य क़ी तरह घूमते हुये ज़ब उन्होंने देखा तो सीता के मन में उनके भगबान होने क़ी शंका उत्पन्न हो गईं. सती ने यही बात भोलेनाथ को बताई तो शंकर जी ने सती को समझाया कि बे साक्षात नारायण है. वे नर लीला कर रहे है. पर सती को विश्वास नहीं हुआ तो उन्होंने शंकर की आज्ञा लेकर उनकी परीक्षा लेनी चाही. और बो सीता का रूप धारण कर जंगल में घूमने लगी. जैसे ही श्री राम जी से उनका सामना हुआ तो श्री राम ने उनको माता कह कर प्रणाम किया और कहा आप अकेली ही इस जंगल में क्या कर रही है भगवान भोलेनाथ कहां है. सीता का संशय तो निकल चुका था. क्योंकि राम ने तो उनको पहचान लिया कि माँ पार्वती सीता का रूप धारण करके आई हैं. अपनी शंका दूर कर सती ज़ब कैलाश पर्वत पर लौटी तो मन में आत्म ग्लानी तो थी ही कि हमारी चोरी पकड़ी गईं है.


इधर शंकर ने ज़ब देखा कि सती ने सीता का रूप धारण किया है. तो अब ये जगतजननी मां हो गईं अब हमारे और सती के बीच माँ और पुत्र का रिश्ता हो गया है. यह सोचकर उन्होंने मन में निश्चय कर लिया कि आज से हम सती रूप में इनका त्याग करता हूँ.

शंकर के मन की बात सती भी जान गईं कि इन्होने हमारा परित्याग कर दिया है.

एकबार देवताओं की सभा जुडी थी. उसमें राजा दक्ष को सभापति बना दिया गया. ज़ब प्रजापति की उपाधि मिल गईं तो कृष्णा दी ने बताया राजा दक्ष को भी घमंड हो गया, प्रभुता पाइ काहि मद नाहीं.उन्होंने उसी घमंड में शंकर जी का अपमान करना शुरू कर दिया. कहा सभ्यओँ की सभा में असभ्य का क्या काम, न तन पर वस्त्र है और न साथ में कोई सेवक है.ज़ब ज्यादा कुछ कहा तो नद्दी को गुस्सा आ गया. और श्राप दिया राजा दक्ष तेरा मुँह बकरे का हो जाय. राज सभा श्राप सभा में बदल गईं. तो शंकर ने सोचा हमारी बजह से इस सभा में व्यवधान पड़ रहा है इसलिए यहाँ से चले जाना ही चाहिए. और वे सभा छोड़कर चले आये. आगे बताया. एकबार राजा दक्ष ने यज्ञ किया सभी देवताओं को निमंत्रण दिया पर शंकर जी को निमंत्रण नहीं दिया।


सती मायके में जाने के लिए जिद करने लगी. शंकर जी ने सती को बहुत मना किया पर बो मानी नहीं. और नद्दी को साथ लेकर अपने पिता राजा दक्ष के घर कनखल चली आई. राजा दक्ष ने सती को देखकर मुँह मोड़ लिया. बहनों ने भी सती की हसीं उड़ाई.सती ने ज़ब सभा में अपने पति का आसन नहीं देखा तो क्रोध से भर गईं और अपनी अंगुली से अग्नि प्रकट कर हवन कुंड में कूद गईं. ज़ब ये ख़वर गणों ने आकर शंकर जी को बताई तो उन्होंने अपनी जटा से अपना प्रतिरूप बीरभद्र पैदा कर सभा में भेज दिया. उसने आकर सभा तहस नहस कर दी. और राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया.

यज्ञ अधूरा देख सबने बीरभद्र से अनुनय बिनय कर मना लिया. दक्ष के सिर पर बकरे का सिर जोड दिया तब जाकर यज्ञ पूरा हो सका.

आपको बताते चले रामलीला समिति ने बहुत ही योग्य और काबिल कथा बाचक को बुलाया है. आपका और हमारा सौभाग्य है. जो देशों और बिदेशों में कथा कहता हो लोग उनके दर्शनों के लिए ही लालायत रहते हों बो आपके शहर में पधारी है. ऐसा मौका आपको बारम्बार नहीं मिलेगा. इसलिए आप अपना समय इस कीमती कथा में दीजिये. और पुण्य लाभ के भागी बनिये.हम आपको विश्वास दिलाते है इतनी सुन्दर कथा आपको अपने जीवन काल में फिर अन्यत्र सुनने को नहीं मिलेगी.

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