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हरदोई: मानव जीवन में भगवान राम का चरित्र जरूरी,,,जगद्‌गुरु रामस्वरूपाचार्य

 चन्दगीराम मिश्रा हरदोई यूपी


मानव जीवन में भगवान राम का चरित्र जरूरी,,,जगद्‌गुरु रामस्वरूपाचार्य 

मल्लावां हरदोई,शान्ती सत्संग मंच के 52वें वर्ष के द्वितीय दिन के आध्यात्मिक संत्संग एवं संत सम्मेलन में कामदगिरि पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामस्वरूपाचार्य जी ने विचार व्यक्त किए। किसी भी समाज राष्ट्र व देश का सुद्रढ बनाने के लिए राम जैसे चरित्र की बहुत बड़ी. आवश्यकता है आजकल समाज में चरित्र का हनन हो रहा है जिससे कि भाई भाई में सम्पति का बटकारा ही रह गया है जब कि पहले के भाई विपत्ति का बटवारा करके कष्टों को कम करते थे। रामकथा से चिंतन और उससे चिंतन उर्जा का शरीर में प्रवाह होता है। सत्संग मानव जीवन की बड़ी ही आवश्यकता है। मानव जीवन में सात्विकता आए तो उसके लिए रामकथा का सुनना और जरूरी है। मानव जीवन की जिन्दगी एक प्रवाह की समझना तरह है जिसमें तरंगे और लहरे दिखाई पड़ती है यह प्रवाह एक गति से चलता है। जब मानव आध्यात्मिक चिंतन से जुड़ जाता है तो जीवन में उर्जा प्रवाहित होती है।

मानव जीवन का लक्ष्य आत्मसाक्षात्कार एवं भगवान के साथ स्वयं को उससे सम्बध स्थापित करना है यही जीवन का उद्देश्य है भगवान के साथ स्वयं के सम्बंध का साक्षात्कार कर लेना ही जीवन की सिद्धि है। इम जीवात्मा ईश्वर के विभिन्न अंग है इसीलिए भगवत सेवा करने के लिए कर्तव्य बद्ध और वचन बद्ध भी है |

जगद्गुरु रामस्वरूपाचार्य जी ने रामचरित मानस को घर घर में पढने की आवश्यकता है उससे जीवन में सुख, शान्ति और जीवत में आनन्द आता है। हनुमान जी रामचरित मानस को सुनने के लिए लालायित रहते हैं " प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिय" रामचरित मानस एक प्रेरणा श्रोत है,परम उदार है सभी प्राणियों के हित के लिए बात कही गई है। रामचरित मानस विषाद से शान्ति की ओर ले जाती है। विज्ञान से बाहर की सुविधाए तो बढी है। अध्यात्म से खोया हुआ विश्वास मिलता है। आजकल जितनी भी समस्याएं है उसका समाधान एक ही रामचरित मानस के इस भाव में, कर्म में और भावना में लाए । हम लोग यह संकल्प सलें या प्रयास करे कि रामचरित मानस के द्वारा हम कपने व्यक्तित्व को सुधारें।

जालौन से पधारी, मिथिलेश्वरी जी ने केवल और ईश्खर का व्याख्यान दिया कौर बताया कि जरात में रटकर जगदीश से जुड़े रहे तभी ईखर आपका कल्याण करेगा। समाज केअंदर पतन का कारण केवल सोच है। हमें अच्छी सोच के द्वारा मानव को मानवीय मूल्यो को बढ़ाना चाहिए। भगवान की कथा से आपको भौतिक सुख और आनन्द मिलता है। माया का अधिकार ईश्वर पर नहीं जीव पर होता है। जीवात्मा परमात्मा का अंश है "ईश्वर अंश जीवन अविनाशी"। कथा लोक और परलोक दोनों सुधारती है रामकथा को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। मानव जीवन का उद्देश्य यही है कि हम ईश्वर से सच्चा प्यार करें।

"रामचरित मानस एहि नामा, सुनत श्रवण पाही विश्वामा' " 

अति हरिकृ‌पा जाई पर होई।" 

विनु सत्संग विवेक न होई, रामकृपा बिनु सुलभ न होई !!

जगतगुरु पारीक्षा पीठाधीश्वर महावीर दास जी महाराज ने बताया कि जिस शान्ति को हम चाहते है वह केवल आध्यात्मिक मंच है जिसमे आपको आत्मा का परमात्मा का मिलन बताते हैं । संत की वाणी हमारे जीवन में अंधेरा मिरा देती है और सत्त्चे मारी मारी पर चलने के लिए प्रेरित व जाग्रत करती है। है।ईश्वर का का प्रेम पाने पर मनुष्य बाहरी शक्ति को भूल जाता है तब उसको संसार का ध्यान नही रहता है यहाँ तक कि अपने शरीर को भूल जाता है। ऐसी अवस्था आने पर आपको कुछ अलग तरह से महसूस होने लगता है। ईश्वर सर्वत्र है पर जो जो भक्त नहीं हैं उन्हे दिखाई नहीं देते । जल में, थल में, पत्थर में में कहाँ नही है जिधर देखो उधर ही ईश्वर है। पर अभक्तों के लिए केवल शून्य दिखाई देता है। सत्संग कार्यक्रम देर रात तक चला। सत्संग की पूरी व्यवस्था दिनेश चन्द्र, उमेश चन्द्र, प्रकाश चन्द्र और संतोष चन्द्र ने संभाली। मंच का संचालन डा० अशोक चन्द्र सुप्त ने किया।

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