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रांची झारखण्ड: शिबू सोरेन: झारखंड के जनक, आदिवासी हितैषी और उनके अंतिम विदाई में राष्ट्रीय सम्मान

 रांची झारखण्ड 

संवाददाता..एडवोकेट राजेश कुमार 

शिबू सोरेन: झारखंड के जनक, आदिवासी हितैषी और उनके अंतिम विदाई में राष्ट्रीय सम्मान

झारखंड के इतिहास में एक युग का अंत हो गया। जब ‘दिशोम गुरु’ के नाम से विख्यात शिबू सोरेन का 4 अगस्त 2025 को 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया। दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद उन्होंने अंतिम सांस ली। शिबू सोरेन, जिन्हें झारखंड के गठन का जनक और आदिवासी समुदाय का मसीहा माना जाता है, का अंतिम संस्कार उनके जन्मस्थान रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में पूरे राष्ट्रीय सम्मान के साथ किया गया। इस अवसर पर उनके पुत्र, झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, और विपक्षी नेताओं सहित देश के कई प्रमुख राजनेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

*शिबू सोरेन: एक आदिवासी नायक का उदय*

11 जनवरी 1944 को हजारीबाग (अब झारखंड) के नेमरा गांव में एक आदिवासी परिवार में जन्मे शिबू सोरेन ने अपने जीवन को आदिवासियों के अधिकारों और सम्मान की लड़ाई के लिए समर्पित कर दिया। उनके पिता की हत्या महाजनी प्रथा के विरोध के कारण हुई थी, जिसने शिबू सोरेन को सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी। 1970 के दशक में उन्होंने ‘धनकटनी आंदोलन’ के माध्यम से आदिवासी समाज की आवाज को बुलंद किया और सूदखोरी, शराबबंदी जैसे मुद्दों पर संघर्ष किया।

1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना के साथ, शिबू सोरेन ने न केवल आदिवासियों को एक राजनीतिक मंच प्रदान किया, बल्कि बिहार से अलग झारखंड राज्य के गठन की मांग को भी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनके नेतृत्व में JMM ने 2000 में झारखंड राज्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिबू सोरेन की यह लड़ाई केवल राजनीतिक नहीं थी, बल्कि यह आदिवासी संस्कृति, जमीन और पहचान की रक्षा का प्रतीक थी।


*राजनीतिक सफर और योगदान*

शिबू सोरेन ने तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया—2005 (10 दिन), 2008-2009, और 2009-2010। हालांकि, गठबंधन की नाजुक स्थिति के कारण वे कभी भी पूर्ण कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। इसके बावजूद, उन्होंने दुमका लोकसभा सीट से छह बार सांसद रहकर और केंद्रीय कोयला मंत्री के रूप में केंद्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की। उनके नेतृत्व में JMM ने आदिवासियों और वंचित वर्गों के लिए सामाजिक न्याय और विकास के मुद्दों को प्राथमिकता दी।

शिबू सोरेन का जीवन विवादों से भी घिरा रहा। 1974 के चिरुदीह हत्याकांड और 1994 में उनके सचिव शशिनाथ झा की हत्या के मामले में उनकी संलिप्तता के आरोपों ने उनके राजनीतिक करियर को प्रभावित किया। फिर भी, उनकी लोकप्रियता और आदिवासी समुदाय में उनके प्रति सम्मान कभी कम नहीं हुआ।

*अंतिम विदाई और राष्ट्रीय सम्मान*

शिबू सोरेन का अंतिम संस्कार 5 अगस्त 2025 को उनके पैतृक गांव नेमरा में पूरे राष्ट्रीय सम्मान के साथ किया गया। उनके पार्थिव शरीर को रांची विधानसभा में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया, जहां हजारों समर्थकों और नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के गंगा राम अस्पताल में उनके पार्थिव शरीर के दर्शन किए और X पर लिखा, “शिबू सोरेन जी एक जमीनी नेता थे, जिन्होंने जनता के प्रति अटूट समर्पण के साथ सार्वजनिक जीवन में ऊंचाइयों को छुआ।”

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी रांची पहुंचकर शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि अर्पित की। राहुल गांधी ने कहा, “आदिवासी समाज की मजबूत आवाज, सोरेन जी ने उनके हक और अधिकारों के लिए आजीवन संघर्ष किया। झारखंड के निर्माण में उनकी भूमिका को हमेशा याद रखा जाएगा।” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, और अन्य नेताओं ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।

हेमंत सोरेन: पिता की विरासत को आगे बढ़ाने वाला पुत्र

शिबू सोरेन के मंझले पुत्र और झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पिता के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। X पर एक भावुक पोस्ट में उन्होंने लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।” मीडिया से बात करते हुए हेमंत ने कहा, “मानो वो छांव ही चली गई। गुरुजी ने न केवल झारखंड में, बल्कि पूरे देश में सामाजिक न्याय के लिए अनगिनत लड़ाइयां लड़ीं। उनकी कमी हमेशा खलेगी।”

हेमंत सोरेन, जो अप्रैल 2025 में JMM के अध्यक्ष बने, अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने 2013-2014, 2019-2024 और 2024 से अब तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया है। आदिवासी भूमि की रक्षा के लिए छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (SPT) में संशोधन के खिलाफ उनके विरोध ने उन्हें आदिवासी समुदाय में और भी लोकप्रिय बनाया। 2019 में उन्हें दुमका और बरहैट में उनके कार्यों के लिए “चैंपियंस ऑफ चेंज अवार्ड” से सम्मानित किया गया था।

*विपक्षी नेताओं का योगदान*

शिबू सोरेन के निधन पर विपक्षी नेताओं ने भी उनके योगदान को याद किया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, “शिबू सोरेन के निधन से एक अध्याय का अंत हुआ।” JMM के नेतृत्व में ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा होने के नाते, विपक्षी नेताओं ने उनके सामाजिक न्याय और आदिवासी अधिकारों के लिए किए गए कार्यों की सराहना की। उनकी मृत्यु पर संसद के दोनों सदनों में श्रद्धांजलि दी गई, और राज्यसभा की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई।

निष्कर्ष

शिबू सोरेन का जीवन संघर्ष, बलिदान और आदिवासी समुदाय के सशक्तिकरण की कहानी है। उनके नेतृत्व में झारखंड ने न केवल एक अलग राज्य की पहचान हासिल की, बल्कि आदिवासियों को उनकी आवाज और अधिकारों के लिए एक मंच भी मिला। उनके निधन से झारखंड और पूरे देश ने एक महान नेता खो दिया, लेकिन उनकी विरासत उनके पुत्र हेमंत सोरेन और JMM के माध्यम से जीवित रहेगी। नेमरा गांव में उनके अंतिम संस्कार में राष्ट्रीय सम्मान और हजारों लोगों की उपस्थिति इस बात का प्रतीक थी कि ‘दिशोम गुरु’ हमेशा आदिवासियों के दिलों में अमर रहेंगे।

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