"बारिश तू क्यो आती है?" तेरे आने से ग्रामीण अंधेरे में डूब जाते है!
ब्यूरो रिपोर्ट - पंकज तिवारी, TTN24
बारिश बनी अंधेरे की वजह – केशरूआ फीडर से जकड़ा ग्रामीण अंधकार
दिन हो या फिर रात अखमिचौली का बस्तूर जारी, जिम्मेदारों द्वारा फुल टाइम आश्वाशन
चित्रकूट/मानिकपुर - "बारिश तू क्यों आती है..." ये पंक्तियाँ अब ग्रामीणों की पीड़ा को बखूबी बयां करती हैं। मानिकपुर उपकेंद्र के अंतर्गत आने वाला केशरूआ फीडर एक बार फिर से बिजली संकट का शिकार हो गया है। हल्की बारिश होते ही ग्रामीण अंधेरे में डूब जाते हैं और यह सिलसिला सालों से बदस्तूर जारी है। हाल ही में दक्षिणांचल विद्युत निगम के प्रबंध निदेशक नीतीश कुमार चित्रकूट पहुँचे थे। उन्होंने जनप्रतिनिधियों, किसानों के साथ बैठक कर समस्याएँ सुनी थीं। बैठक में तत्काल समाधान के निर्देश भी दिए गए थे, मगर ज़मीनी हालात वही ज्यो का त्यों हैं - अंधकार और अनदेखी।
"सरकार केवल वादे करती है" - ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ा, बारिश के साथ ही घंटों नहीं, बल्कि कई-कई दिनों तक बिजली गुल रहती है। पंप बंद, बच्चों की पढ़ाई ठप, मोबाइल-टीवी बेकार और मरीजों के लिए संकट का आलम। केशरूआ फीडर की यह दशा स्थानीय प्रशासन और विद्युत विभाग की लापरवाही को दर्शाता है।
मीटिंगें बनी जुमला, समाधान दूर - दावा किया गया था कि मानसून से पहले समस्त जर्जर तारों और ट्रांसफार्मरों की मरम्मत की जाएगी, लेकिन धरातल पर ना कोई मेंटेनेंस हुआ, ना लाइन सुधरी। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकारी आते हैं, तस्वीरें खिंचती हैं, और फिर सबकुछ पुराने ढर्रे पर लौट जाता है।कौन लेगा जिम्मेदारी? अब सवाल ये है कि अगर एमडी स्तर की बैठक के बाद भी समाधान न निकले तो आखिर किससे उम्मीद करें ग्रामीण? क्या प्रशासन को ग्रामीण भारत की समस्याएँ केवल कागजों में ही दिखती हैं?
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी - स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी इस मसले पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। नतीजा – मानसून की हर बूंद के साथ अंधकार और पीड़ा की गहराई बढ़ती जा रही है। इस खबर को व्यापक रूप से उठाने का उद्देश्य यह है कि शासन-प्रशासन सजग हो और केशरूआ फीडर सहित सभी प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों को स्थायी समाधान मिल सके।