विनोद कुमार पांडे ब्यूरो चीफ
गरीब पर सख्त! छत्तीसगढ़ में 6500 करोड़ के बिजली बिल बकाया, मंत्री–सांसदों पर नियम ढीले, आम आदमी की लाइट काटी जाती है
5800 उपभोक्ताओं से 120 करोड़ वसूली का दावा,
लेकिन नेताओं–अफसरों पर बकाया के बावजूद न नोटिस, न कनेक्शन कटौती
मुख्य समाचार (प्रिंट मीडिया स्टाइल)
चिरमिरी/रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड (CSPDCL) का दोहरा चेहरा एक बार फिर उजागर हो गया है। एक तरफ आम नागरिक, गरीब और मध्यमवर्गीय उपभोक्ता का ₹5000 भी बिजली बिल बकाया होने पर तुरंत कनेक्शन काट दिया जाता है, नोटिस थमाया जाता है और कोर्ट तक घसीटा जाता है। वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के मंत्री, विधायक, सांसद, पूर्व मुख्यमंत्री, बड़े प्रशासनिक संस्थान और अफसर लाखों–करोड़ों रुपये का बिजली बिल बकाया रखकर भी बेखौफ हैं।बिजली विभाग के ही आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 5800 बड़े उपभोक्ताओं से करीब 120 करोड़ रुपये की वसूली अब तक बाकी है। लेकिन जब बात नेताओं और प्रभावशाली लोगों की आती है, तो नियम–कानून मानो ठंडे बस्ते में चले जाते हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कांग्रेस और भाजपा—दोनों दलों के बड़े नेताओं पर भारी-भरकम बिजली बिल बकाया हैं, फिर भी न तो बिजली कटी, न सख्त नोटिस जारी हुए और न ही वसूली की कोई ठोस कार्रवाई दिखाई देती है।
बकायेदारों की सूची पर नज़र डालिए—
विजय शर्मा, उपमुख्यमंत्री – ₹1.76 लाख बिजली बिल बकाया
श्याम बिहारी, स्वास्थ्य मंत्री (छत्तीसगढ़) – ₹3.32 लाख बकाया
बृजमोहन अग्रवाल, सांसद – ₹1,23,873 बकाया
विधानसभा सचिवालय – ₹22.24 लाख बकाया
IAS एसोसिएशन – ₹63.60 लाख बिजली बिल बकाया
प्राचार्य, शासकीय प्रवास आवासीय विद्यालय – ₹63.44 लाख बकाया
दीपक बैज, पीसीसी अध्यक्ष (कांग्रेस) – ₹1.18 लाख बकाया
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल – ₹1.02 लाख बकाया
ज्योत्सना चरणदास महंत, सांसद (कांग्रेस) – ₹1.62 लाख बकाया
इन आंकड़ों से साफ है कि जिन लोगों के हाथ में प्रदेश की सत्ता और प्रशासन की कमान है, उन्हीं पर बिजली विभाग की सबसे बड़ी “बकाया फाइलें” धूल खा रही हैं।
आज जब प्रदेश में भाजपा सरकार स्मार्ट मीटर लगाने और बिजली बिल में राहत देने की बात कर रही है, तब सवाल उठता है कि क्या स्मार्ट मीटर सिर्फ आम आदमी के लिए हैं?
क्या मंत्रियों, सांसदों और अफसरों के घरों में अलग मीटर लगे हैं, या उन पर नियम लागू ही नहीं होते?
आम उपभोक्ता का कुछ हजार रुपये बकाया होने पर बिजली काट दी जाती है, लेकिन लाखों–करोड़ों का बकाया रखने वाले नेता और बड़े संस्थान पूरी बिजली सुविधा के साथ ऐश कर रहे हैं। इससे साफ होता है कि या तो बिजली विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल है, या फिर राजनीतिक दबाव में आंखें मूंदे बैठा है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब इन नेताओं और बड़े संस्थानों से समय पर वसूली नहीं होती, तो उसका बोझ आखिरकार गरीब और मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं पर ही क्यों डाला जाता है?
क्या कानून सिर्फ आम नागरिक के लिए बना है?
