क्राइम ब्यूरो _ मोहम्मद अहमद
जिला बाराबंकी
*दलित गरीब ने बकाया बिजली बिल और वेजिलेंस द्वारा चालान माफ करने की लगाई सांसद से गुहार*
बाराबंकी। दलित पीड़ित का 30 हजार का बकाया बिल अदा करने में असमर्थ होने पर भी जनपद विजिलेंस वालों ने चालान अलग कर दिया। रकम इतनी हो गई कि परिवार जुगाड़ कहां से करे ये समझ नहीं पा रहा है। भाजपाईयों द्वारा सुध ना लेने पर पीड़ित ने कांग्रेसी सांसद तनुज पुनिया के यहां गुहार लगाई। जहां से पीड़ित को बातचीत कर बाराबंकी नवाबगंज अधिशाषी अभियन्ता के यहां भेज दिया और वहां से किसी अवधेश बाबू के पास, जिसनें हाथ खड़े कर दिए।
बताते चलें कि दुनिया भर का टैक्स वसूल रही सरकार ने गरीबों का स्तर उठाने के तमाम प्रयासों तब मात्र खानापूर्ति नजर आते हैं जब बिजली विभाग की लापरवाही का ठीकरा भी भ्रस्टाचारी हुआ तंत्र उन पर फोड़ शोषण करने का प्रयास करता है। जिनके पास शरीर की रंगों में दौड़ता खून छोड़ कुछ है ही नहीं, तो वो देंगे कहां से। सामने आए मामले में बीती 19 अप्रैल 2025 को विजिलेंस वालों ने गांधी नगर में 5-6 लोगों को पकड़ा व संबंधित दीपक कुमार पुत्र स्व.दुर्गा प्रसाद के बताए अनुसार बाकियों को 20 से 35 हजार रुपये लेकर छोड़ने की बात बताते हुए बताया कि संबंधित ने 20 हजार नहीं दिया तो चालान कर दिया। मजेदार बात यह है कि छापे दौरान आपूर्ति भी ठप थी। पीड़ित का कहना है कि वो बहुत गरीब आदमी है बिजली का बिल भी 30 हजार बकाया है इतना रुपया पूरा परिवार कहां से लाएगा। बता दें गांधी नगर दलित बस्ती है। जहां ज्यादातर मकान प्रधानमंत्री आवास योजना तहत मिला था। अब पीड़ित के हिसाब से पूरे परिवार को आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यहां ये भी गौर करने वाली बात है कि पीड़ित बीमार व्यक्ति है जिसकी 3-़3 बार शल्य चिकित्सा हो चुकी है। हर जगह टैक्स वसूल रहीं सरकार को ये भी सोचना चाहिए कि गरीब भी मनुष्य ही है।
(इनसेट)
*सरकार पहले गरीबों को ही क्यों नहीं दे देती सोलर सिस्टम*
बाराबंकी। वैसे अगर देश का बड़ा वर्ग सरकारी तंत्र सहित अगर प्राकृतिक दोहन ना करता होता तो ना वातावरण का तापमान इतना होता कि गरीब आदमी को दिक्कत होती। अब अगर सरकारी खामियों के चलते प्राकृतिक प्रकोप में बढ़े तापमान में गरीबों का रहना मुश्किल हो रहा है, हाई फाई बिजली बिल देने की गरीबों में हैसियत नहीं है, तो करना तो सरकार को ही पड़ेगा या तो बिजली बिल पर सब्सिडी दे या माफ कर दे। या फिर एक लाख आठ हजार की सब्सिडी में बैंक द्वारा पहले दलित बस्तियों में ही क्यों नहीं सरकार सोलर सिस्टम लगा देती है? शायद इसके पीछे सरकारी अधिकारी कर्मचारी पूरी योजना हजम ना कर जाएं की सरकारी सोच हो सकती है। तो फिर दुनिया कहेगी नहीं कि हजार दो हजार की बिजली चोरी दलित गरीब कर ले तो पुलिस प्रशासन का पूरा ताना बाना।जिसके लिए सरकार, संविधान, व्यवस्थाएं संविधान के हिसाब से ही सब कुछ है, की शिकायत से लेकर दर्द भी सिफर तो उससे भी कई गुना बड़ी चोरी है, उसका क्या? पहले प्रोविजन था भी कि कॉशीराम आवास सहित दलित बस्तियों में बिजली फ्री रहेगी। लेकिन मंत्रियों विधायकों सांसदों के यहां सब फ्री लेकिन जिनके प्रतिनिधि हैं वही हासिए पर। यह लोकतंत्र तो नहीं कहा जा सकता।