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छत्तीसगढ़: सनसनी कहानी जो अजित ओगरे: नक्सलियों के लिए काल, देश के लिए प्रेरणा छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में एक नाम ऐसा है, जो नक्सलियों के दिलों में करता है खौफ पैदा

 नैशनल हैंड लीगल एडवाइजर अधिवक्ता राजेश कुमार की कलम से

 एंकर सनसनी कहानी जो अजित ओगरे: नक्सलियों के लिए काल, देश के लिए प्रेरणा छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में एक नाम ऐसा है, जो नक्सलियों के दिलों में खौफ पैदा करता है और देशवासियों के लिए गर्व का प्रतीक है—पुलिस इंस्पेक्टर अजित ओगरे। 14 साल की अपनी सेवा में अजित ओगरे ने न केवल 66 नक्सलियों का एनकाउंटर किया, बल्कि 1100 से अधिक नक्सल विरोधी ऑपरेशनों का हिस्सा बनकर अपनी बहादुरी और समर्पण का परचम लहराया। तीन बार गोली लगने के बावजूद, उन्होंने नक्सल मोर्चे पर डटकर मुकाबला करने का जज्बा कभी नहीं छोड़ा। उनकी कहानी साहस, कर्तव्यनिष्ठा और देशभक्ति की मिसाल है।ट्रक ड्राइवर से नक्सलियों का काल बनने तक का सफरअजित ओगरे का जीवन शुरू से ही साधारण रहा। पुलिस सेवा में आने से पहले वे रायपुर में रहते थे और हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड कंपनी के लिए ट्रक चलाते थे। साल 2004 में उनका चयन पुलिस सब-इंस्पेक्टर के रूप में हुआ और उनकी पहली पोस्टिंग छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर के जंगलों में हुई। यह वह क्षेत्र था, जहां नक्सलियों का आतंक अपने चरम पर था। लेकिन अजित ने इस चुनौती को न केवल स्वीकार किया, बल्कि इसे अपनी ताकत बना लिया।उनके साहस और रणनीति की बदौलत, उन्होंने 14 साल की सेवा में 66 नक्सलियों को ढेर किया और 1100 से अधिक नक्सल विरोधी ऑपरेशनों में हिस्सा लिया। खास बात यह है कि उनके नेतृत्व में हुए किसी भी ऑपरेशन में एक भी जवान शहीद नहीं हुआ, जो उनकी कुशल रणनीति और नेतृत्व का प्रमाण है।नक्सलियों की हिटलिस्ट में शीर्ष परअजित ओगरे की बहादुरी का आलम यह है कि नक्सलियों ने उन्हें अपनी हिटलिस्ट के टॉप-5 में शामिल किया है। कई सरेंडर करने वाले नक्सलियों ने खुलासा किया कि ओगरे को मारने के लिए नक्सलियों ने विशेष टीमें बनाई थीं। लेकिन अजित ने कभी भय को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उन्हें कई बार मैदानी इलाकों में पोस्टिंग का प्रस्ताव मिला, लेकिन उन्होंने हमेशा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अपनी ड्यूटी को चुना।एक साक्षात्कार में अजित ने कहा था, “मैंने अपनी पहली शादी एके-47 से की है, जो हमेशा मेरे साथ रहती है। मैं सोते समय भी इसे अपने पास रखता हूं।” यह बयान उनकी निडरता और नक्सलियों के खिलाफ उनके जुनून को दर्शाता है।तीन बार राष्ट्रपति वीरता पदक से सम्मानितअजित ओगरे की वीरता को देश ने भी सम्मानित किया है। उन्हें तीन बार राष्ट्रपति वीरता पदक से नवाजा गया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने उनकी बहादुरी को देखते हुए उन्हें आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन देकर पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) बनाया। इसके अलावा, छत्तीसगढ़ पुलिस ने उन्हें पहला “एनकाउंटर स्पेशलिस्ट” इंस्पेक्टर चुना और एक विशेष पिस्टल भेंट की।नक्सल क्षेत्रों में जानबूझकर पोस्टिंगअजित ओगरे की सबसे खास बात यह है कि वे जानबूझकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अपनी पोस्टिंग करवाते हैं। जब कवर्धा को नक्सल प्रभावित जिला घोषित किया गया, तब उन्होंने वहां नक्सल ऑपरेशन की कमान संभाली। राजनांदगांव जिले में भी वे लंबे समय तक मानपुर, मोहला, और छुरिया जैसे नक्सल प्रभावित थानों में तैनात रहे, जहां उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ कई सफल ऑपरेशन किए।एक प्रेरणादायक व्यक्तित्वअजित ओगरे सिर्फ एक पुलिस अधिकारी नहीं, बल्कि एक प्रेरणा हैं। तीन बार गोली लगने के बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनका कहना है, “जब तक नक्सली हैं, मैं जंगलों में ड्यूटी देता रहूंगा।” उनकी यह प्रतिबद्धता और देश के प्रति समर्पण हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।निष्कर्षअजित ओगरे जैसे वीर सपूत देश की सुरक्षा और शांति के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने को तैयार रहते हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि साहस, कर्तव्यनिष्ठा और देशभक्ति के सामने कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती। सरकार और समाज को ऐसे नायकों को न केवल सम्मान देना चाहिए, बल्कि उनके योगदान को प्रेरणा के रूप में अपनाना चाहिए

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