क्राइम ब्यूरो _ मोहम्मद अहमद
जिला बाराबंकी
*बाराबंकी: करोड़ों की मशीनें धूल फांक रहीं, विशेषज्ञ नदारद—"ज़िंदगी से खेल रहा जिला अस्पताल*
*अगर तत्काल मामला संज्ञान में नहीं लिया जाता तो सरकार के खिलाफ़ सड़क से सदन तक आंदोलन : निहाल अहमद*
बाराबंकी। जहां सेहत की उम्मीद हो, वहां अगर ताले मिलें और विशेषज्ञ नहीं—तो इसे व्यवस्था नहीं, विफलता कहते हैं।रफ़ी अहमद क़िदवई स्मारक जिला अस्पताल, बाराबंकी—जिस पर पूरे जनपद की आबादी अपनी साँसों की सुरक्षा के लिए निर्भर करती है—वर्षों से हृदय रोग विशेषज्ञ के बिना ही कार्य कर रहा है। हालात इतने चिंताजनक हैं कि यहां की करोड़ों रुपये की आधुनिक ईको मशीनें बंद कमरों में जंग खा रही हैं। जब जिले के सबसे बड़े अस्पताल में ही इलाज संभव न हो, तो आमजन जाए कहां? उपकरण हैं, पर डॉक्टर नहीं—क्या यही है "न्याय" स्वास्थ्य के नाम पर?अस्पताल परिसर में मौजूद ईको मशीनें, ट्रामा सेंटर, और कई अहम जांच सुविधाएं आज सिर्फ नाम मात्र की रह गई हैं। विशेषज्ञ डॉक्टर की तैनाती न होने से न सिर्फ ये मशीनें अनुपयोगी साबित हो रही हैं, बल्कि मरीजों को जान जोखिम में डालकर लखनऊ रेफर होना पड़ता है।स्थानीय नागरिकों का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्री व उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक खुद कई बार बाराबंकी आ चुके हैं, लेकिन अस्पताल की दशा में कोई बदलाव नहीं आया। मरीज लाचार, डॉक्टर बेपरवाह—"मोटी तनख्वाह, शून्य सेवा भावना" शिकायतें हैं कि कुछ डॉक्टर मरीजों से ठीक से बात तक नहीं करते। इलाज की जगह टालमटोल और लापरवाही का रवैया आम हो चुका है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि ये डॉक्टर सिर्फ़ सरकारी वेतन लेने आते हैं, न मरीजों से संवाद करते हैं, न ही इलाज में संजीदगी दिखाते हैं। सीएमओ की अनदेखी बनी मरीजों की दुश्वारी की जड़: स्थानीय लोग मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अवधेश कुमार यादव पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। न तो वर्षों से खाली पड़े हृदय रोग विशेषज्ञ के पद पर कोई नियुक्ति करवाई गई, और न ही ईको व अन्य जांच सुविधाओं को क्रियाशील करने के प्रयास हुए। अल्ट्रासाउंड तक के लिए अस्पताल में स्थायी डॉक्टर नहीं है। कभी-कभी प्रशिक्षु छात्राएं जांच करती हैं, और कुछ समय बाद चली जाती हैं, जिससे मरीजों को निजी सेंटरों का रुख करना पड़ता है। गेट बंद, रास्ता लंबा—एमरजेंसी में जानलेवा देरी: धनोखर की ओर जाने वाले अस्पताल के गेट को बंद कर दिया गया है, जिससे रात में शहरवासियों को इमरजेंसी में 2–3 किलोमीटर लंबा चक्कर लगाना पड़ता है। नागरिकों की मांग है कि इस गेट को तत्काल खोला जाए। "ट्रामा सेंटर या रिफर सेंटर?"—जब इलाज नहीं, तो अस्पताल क्यों? स्थानीय समाजसेवियों ने तीखे सवाल उठाए हैं—जब अस्पताल में सभी मरीज़ों को रेफर ही किया जाना है, तो फिर ट्रामा सेंटर का क्या औचित्य रह गया है? क्या शासन को यह नहीं दिख रहा कि बाराबंकी का जिला अस्पताल एक शो-पीस बन चुका है?“अगर मर्ज की तर्ज पर ही भेजना है, तो मरीज सीधे लखनऊ चला जाए, जिला अस्पताल को ताला ही लगा दीजिए।” लोगों का कहना है कि जिस तरह प्राथमिक विद्यालयों को मर्ज किया गया, उसी तर्ज पर अगर अस्पताल को चलाना है, तो यह जनता की ज़िंदगी से खिलवाड़ है। जनता की मांग: "उपकरण हैं तो विशेषज्ञ भी हों, इलाज ज़िले में ही मिलना चाहिए" बाराबंकी की जनता अब खामोश नहीं रहना चाहती। शासन से अपील की जा रही है कि—हृदय रोग विशेषज्ञ की तत्काल तैनाती की जाए, ईको व अल्ट्रासाउंड मशीनों को चालू किया जाए, अस्पताल के गेट को 24×7 खोला जाए, लापरवाह डॉक्टरों पर कार्रवाई हो, जिला अस्पताल को "रिफर सेंटर" बनने से रोका जाए, यह सिर्फ़ स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि ज़िंदगी और मौत का सवाल है। अब जनता पूछ रही है—"क्या हमारी जान की कोई कीमत नहीं? जानकारी देते हुए भारतीय किसान मजदूर यूनियन दशहरी संगठन प्रदेश सचिव व जिलाध्यक्ष बाराबंकी निहाल अहमद सिद्दीकी ने बताया इन्हीं सात दिनों में प्रमुख्य सचिव स्वास्थ्य से मुलाकात कर समस्या से अवगत कराया जायेगा अगर तत्काल मामला संज्ञान में नहीं लिया जाता तो सरकार के खिलाफ़ सड़क से सदन तक आंदोलन होगा जिसका जिसकी सारी जिम्मेदारी जिला प्रशासन व उत्तर प्रदेश सरकार की होगी?