नेशनल हेड एवं लीगल एडवाइजर अधिवक्ता राजेश कुमार की लेखनी
एंकर। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई: संविधान की रक्षा और स्वच्छ न्यायपालिका के प्रतीक।भारत का सर्वोच्च न्यायालय देश का सर्वोच्च संवैधानिक निकाय है, जो न केवल न्यायिक प्रक्रियाओं का संरक्षक है, बल्कि संविधान की आत्मा और लोकतंत्र की नींव का भी रक्षक है। इस न्यायिक मंदिर के वर्तमान प्रधान न्यायाधीश, माननीय श्री बी.आर. गवई, ने अपने दृढ़ निश्चय, निष्पक्ष फैसलों और संविधान के प्रति अटूट निष्ठा के माध्यम से एक ऐतिहासिक छाप छोड़ी है। उनकी कार्यशैली और विचारधारा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे न केवल एक कुशल न्यायाधीश हैं, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में अडिग हैं।
हाल ही में एक कार्यक्रम में उनकी भावुक टिप्पणी, जिसमें उन्होंने अपने पिता के सपनों और डॉ. भीमराव अंबेडकर के आदर्शों का जिक्र किया, ने उनके व्यक्तित्व और उनकी सोच को और भी उजागर किया। यह लेख उनके जीवन, उनके योगदान और उनकी संवैधानिक दृष्टि पर प्रकाश डालता है।प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई का प्रारंभिक जीवन और प्रेरणान्यायमूर्ति बी.आर. गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। उनके पिता, जो स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे, ने सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों के प्रति गहरी आस्था रखी।
एक कार्यक्रम में भावुक होते हुए न्यायमूर्ति गवई ने बताया कि उनके पिता का सपना था कि उनका बेटा वकील बने और डॉ. भीमराव अंबेडकर के दिखाए रास्ते पर चलकर समाज की सेवा करे। उनके पिता स्वयं वकील बनना चाहते थे, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण उनकी गिरफ्तारी ने उनके इस सपने को अधूरा छोड़ दिया।
इस पारिवारिक पृष्ठभूमि ने बी.आर. गवई के जीवन को गहरे रूप से प्रभावित किया। न्यायमूर्ति गवई ने अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए वास्तुशास्त्र में करियर बनाने की अपनी व्यक्तिगत इच्छा को त्याग दिया और कानून के क्षेत्र में कदम रखा। उन्होंने 1985 में बार काउंसिल में पंजीकरण कराया और बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में वकालत शुरू की। उनकी मेहनत और निष्ठा ने उन्हें 1998 में वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा दिलाया। बाद में, वे बॉम्बे उच्च न्यायालय में न्यायाधीश बने और 2019 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त हुए। अंततः, मई 2025 में वे भारत के 52वें प्रधान न्यायाधीश बने, जिससे उनके पिता का सपना साकार हुआ, हालांकि उनके पिता 2015 में इस दुनिया को छोड़ चुके थे।
संविधान की सर्वोच्चता और स्वच्छ न्यायपालिकान्यायमूर्ति गवई ने अपने कार्यकाल में यह स्पष्ट किया है कि संविधान भारत की आत्मा है और यह संसद, कार्यपालिका, या किसी अन्य संस्था से ऊपर है। एक हालिया कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "हमारा लोकतंत्र तीनों अंगों—न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका—के सामंजस्य पर टिका है, लेकिन ये सभी संविधान के अधीन हैं।" उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान का मूल ढांचा अखंड है और इसे कोई भी शक्ति बदल नहीं सकती। यह बयान न केवल उनकी संवैधानिक निष्ठा को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि वे किसी भी दबाव में झुकने वाले नहीं हैं।उनके इस दृष्टिकोण का एक उदाहरण अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण से संबंधित मामले में देखा गया, जहां उन्होंने कहा कि देश को एकजुट रहने के लिए एक संविधान के तहत चलना होगा। इस फैसले ने उनकी निष्पक्षता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। इसके अलावा, उन्होंने "बुलडोजर जस्टिस" पर अपनी टिप्पणी में कार्यपालिका को चेतावनी दी कि वह एक साथ "न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद" की भूमिका नहीं निभा सकती। यह बयान कार्यपालिका की मनमानी कार्रवाइयों पर अंकुश लगाने और मौलिक अधिकारों की रक्षा के प्रति उनकी दृढ़ता को दर्शाता है।
न्यायिक सक्रियता बनाम न्यायिक आतंकवादन्यायमूर्ति गवई ने न्यायिक सक्रियता के महत्व को स्वीकार किया है, लेकिन साथ ही यह भी चेतावनी दी है कि इसे "न्यायिक आतंकवाद" में नहीं बदलना चाहिए। उनके अनुसार, न्यायपालिका का कर्तव्य संविधान और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है, लेकिन यह कार्य संतुलित और संयमित ढंग से होना चाहिए। यह विचार उनकी संतुलित सोच को दर्शाता है, जो न केवल संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करता है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच सामंजस्य को भी बढ़ावा देता है।उनके नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय ने कई महत्वपूर्ण मामलों में फैसले सुनाए, जिनमें संवैधानिक कानून, मौलिक अधिकार, पर्यावरण, और सामाजिक न्याय से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। उनकी पीठ ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि फैसले संविधान और अंतःकरण के आधार पर हों, न कि जनता की राय या बाहरी दबाव के आधार पर।डॉ. भीमराव अंबेडकर के आदर्शों का अनुसरणन्यायमूर्ति गवई ने अपने पिता के माध्यम से डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को आत्मसात किया। उनके पिता ने उन्हें सिखाया कि वकालत से धन कमाया जा सकता है, लेकिन असली उपलब्धि समाज की सेवा और संविधान की रक्षा में है।
एक कार्यक्रम में उन्होंने भावुक होकर कहा, "मेरे पिता चाहते थे कि मैं आंबेडकर के रास्ते पर चलूं और समाज का भला करूं।" यह बयान उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में अंबेडकर के प्रभाव को दर्शाता है।डॉ. अंबेडकर, जिन्हें भारतीय संविधान का जनक माना जाता है, ने सामाजिक समानता और न्याय के लिए जीवनभर संघर्ष किया।
न्यायमूर्ति गवई ने अपने फैसलों और बयानों के माध्यम से इन आदर्शों को जीवित रखा है। चाहे वह मौलिक अधिकारों की रक्षा हो या कार्यपालिका की मनमानी पर अंकुश लगाना, उनकी हर कार्रवाई में संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता झलकती है।स्वच्छ और पारदर्शी न्यायपालिका की दिशा में कदमन्यायमूर्ति गवई ने स्वच्छ और पारदर्शी न्यायपालिका के लिए कई कदम उठाए हैं। उनके नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय ने तकनीकी नवाचारों को अपनाया है, जैसे कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर निर्णयों का प्रकाशन। इसके अलावा, उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि न्यायालय की कार्यवाही जनता के लिए अधिक सुलभ और पारदर्शी हो। उनके कार्यकाल में सर्वोच्च न्यायालय ने कई ऐतिहासिक फैसले दिए हैं, जो न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सामाजिक और संवैधानिक दृष्टिकोण से भी प्रासंगिक हैं। इन फैसलों ने यह साबित किया है कि न्यायमूर्ति गवई किसी भी दबाव में नहीं झुकते और संविधान को सर्वोपरि मानते हैं। निष्कर्ष प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई न केवल एक कुशल न्यायाधीश हैं, बल्कि एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने अपने पिता के सपनों और डॉ. भीमराव अंबेडकर के आदर्शों को अपने जीवन का आधार बनाया। उनकी भावुक टिप्पणी, जिसमें उन्होंने अपने पिता के सपने को याद किया, न केवल उनके निजी संघर्षों को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि वे संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रति कितने प्रतिबद्ध हैं।उनके नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय न केवल संविधान का रक्षक बना हुआ है, बल्कि एक ऐसी संस्था के रूप में उभरा है जो स्वच्छ, निष्पक्ष और पारदर्शी न्याय प्रणाली का प्रतीक है।न्यायमूर्ति गवई का यह दृढ़ विश्वास कि "संविधान सबसे ऊपर है" और उनकी यह सोच कि न्यायपालिका का कर्तव्य संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करना है, उन्हें एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनाता है। उनके कार्यकाल में भारत की न्यायिक प्रणाली न केवल मजबूत हुई है, बल्कि यह भी साबित हुआ है कि सच्चा न्याय वही है जो संविधान और अंतःकरण के आधार पर हो।