यातायात निदेशालय, उ0प्र0 लखनऊ द्वारा पुलिस मुख्यालय में आयोजित सड़क दुर्घटना विवेचना पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन
• 17-19 नवम्बर 2025 को 20 ZFD जिलों के अधिकारियों हेतु सड़क दुर्घटना विवेचना पर 3 दिवसीय कार्यशाला आयोजित।
• IRTE विशेषज्ञों ने यातायात इंजीनियरिंग, कानूनी प्रावधान, दुर्घटना जांच व फोरेंसिक साक्ष्य पर प्रशिक्षण दिया।
• डीजीपी उ0प्र0 ने बताया कि सड़क सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक, बहु-आयामी कार्ययोजना लागू है।
• डीजीपी के निर्देश पर 03 पायलट कॉरिडोरों पर चलायी गयी कार्ययोजना के परिणाम स्वरूप गम्भीर दुर्घटनाओं में 41-70 प्रतिशत कमी हासिल की गयी, जिससे मॉडल सफल सिद्ध हुआ।
• डीजीपी द्वारा ZFD जिलों को कम-से-कम 50 प्रतिशत दुर्घटना कमी का लक्ष्य सुनिश्चित करने के निर्देश।
ब्यूरो रिपोर्ट TTN 24
श्री योगी आदित्यनाथ जी, मा0 मुख्यमंत्री उ0प्र0 द्वारा सड़क दुर्घनाओं में कमी लाने के दिये गये निर्देश के क्रम में श्री राजीव कृष्णा, पुलिस महानिदेशक, उ0प्र0 के निर्देशन में यातायात निदेशालय, उ0प्र0 लखनऊ द्वारा पुलिस मुख्यालय गोमतीनगर विस्तार में इन्स्टीट्यूट ऑफ रोड ट्रैफिक एजूकेशन/कालेज ऑफ ट्रैफिक मैनेजमेन्ट एण्ड फारेन्सिक साइन्स, फरीदाबाद, हरियाणा के सहयोग से सड़क दुर्घटना विवेचना पर दिनांक 17.11.2025 से 19.11.2025 तक तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में जीरो फेटेलिटी डिस्ट्रीक्ट (ZFD) के रूप में चिन्हित 20 सर्वाधिक जोखिम वाले जिलों के यातायात के नोडल अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी तथा यातायात से जुड़े कर्मी उपस्थित रहे।कार्यशाला का समापन श्री राजीव कृष्णा, पुलिस महानिदेशक, उ0प्र0 द्वारा आज दिनांकः 19.11.2025 को किया गया। समापन सत्र में डा0 रोहित बलूजा, अध्यक्ष, IRTE एवं डायरेक्टर CTM द्वारा अपने संबोधन के दौरान यातायात इंजीनियरिंग के सिद्धांतो और सड़क अवसंरचना के सम्बंध में एक प्रजेन्टेशन प्रस्तुत किया गया, जिसमें आंकड़ों के माध्यम से दुर्घटना के कारणों एवं उसके निवारण के बारे में बताया गया।
पुलिस महानिदेशक, उ0प्र0 महोदय द्वारा अपने संबोधन में कहा गया कि-
राज्य में सड़क सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने, दुर्घटना-दर में कमी लाने तथा प्रभावी यातायात प्रबंधन के उद्देश्य से प्रदेश पुलिस द्वारा बहु-आयामी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए व्यापक कार्ययोजना लागू की गई है। यह कार्ययोजना मानव कारकों के साथ-साथ सड़क पर्यावरण, इंजीनियरिंग, वाहन-संबंधी कमियाँ तथा नीतिगत चुनौतियों को समग्र रूप से संबोधित करती है।
प्रदेश की अधिकांश ट्रैफिक पुलिस शहरों के भीतर तैनात रहती है, जबकि राष्ट्रीय/राज्य हाइवे और एक्सप्रेस-वे पर प्रमुख रूप से सिविल पुलिस कार्यरत है। कंजेशन प्रबंधन शहरी ट्रैफिक पुलिस की प्राथमिक जिम्मेदारी है, दुर्घटना न्यूनीकरण मुख्यतः हाइवे/एक्सप्रेसवे पर सिविल पुलिस की भूमिका में आता है। इन दोनों समस्याओं के समाधान हेतु अलग-अलग रणनीति और अलग-अलग कार्ययोजना की आवश्यकता है।
तीन माह पूर्व उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा प्रदेश की तीन सर्वाधिक दुर्घटना-प्रभावित सड़कों का चयन कर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया- 1. अलीगढ़ - बुलंदशहर रोड 2. उन्नाव - कानपुर कॉरिडोर 3. कानपुर - हमीरपुर मार्ग।
इन कॉरिडोरों पर स्थानीय पुलिस अधिकारियों को स्पष्ट लक्ष्य दिया गया कि उपलब्ध संसाधनों, इक्विपमेंट, टेक्नोलॉजी, मैनपावर, प्रवर्तन और ट्रैफिक प्रशिक्षण का अधिकतम उपयोग करते हुए घातक दुर्घटनाओं में उल्लेखनीय कमी लाना है।
उक्त पायलट प्रोजेक्ट के परिणाम स्वरूप दो से ढाई महीनों के भीतर इन कॉरिडोरों पर फेटल दुर्घटनाओं में 41 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई। यह सफल मॉडल सिद्ध हुआ कि बिना अतिरिक्त संसाधनों के भी, केंद्रित रणनीति और ज़िम्मेदारी निर्धारण द्वारा सड़क दुर्घटनाओं में ठोस कमी लाना संभव है।
मंत्रालय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग द्वारा समस्त राज्यों के लिए रोड सेफ्टी पर विस्तृत विश्लेषण जारी किया गया। इस रिपोर्ट में Critical Corridors, Critical Districts, Critical Police Stations जैसी श्रेणियाँ निर्धारित की गई थीं। उत्तर प्रदेश पुलिस की पायलट रिपोर्ट के निष्कर्ष लगभग उसी दिशा में पाए गए, जिससे प्रदेश की रणनीति को राष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी सत्यापन मिला।
जीरो फेटेलिटी डिस्ट्रीक्ट (ZFD) के रूप में चिन्हित 20 सर्वाधिक जोखिम वाले जिलों के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश तैयार किए गए। यह दस्तावेज़ बैठकों, मैदानी फीडबैक, इंजीनियरिंग/प्रवर्तन विश्लेषण के आधार पर तैयार किया गया। इसमें प्रत्येक जिले के लिए कॉरिडोर-वार कार्ययोजना, संयुक्त जिम्मेदारी और परिणाम-आधारित मूल्यांकन प्रणाली निर्धारित की गई है।
सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाना पूर्णतः संभव और टिकाऊ (durable) है। यह केवल प्रवर्तन का मुद्दा नहीं, बल्कि इंजीनियरिंग, शिक्षा, प्रवर्तन, आपातकालीन प्रतिक्रिया का संयुक्त परिणाम है। संसाधनों की सीमाओं के बावजूद, फोकस्ड इंटरवेंशन, जिम्मेदारी निर्धारण और तकनीकी दृष्टिकोण से फेटेलिटी रेट में भारी कमी लाई जा सकती है। जब तक यह विश्वास तंत्र में स्थापित नहीं होगा, तब तक कार्ययोजना प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो सकेगी।
उत्तर प्रदेश पुलिस सड़क सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए वैज्ञानिक, तकनीकी और विभागीय-समन्वय आधारित दृष्टिकोण से कार्य कर रही है। राज्य में दुर्घटना-दर कम करने हेतु यह पहला संरचित एवं परिणाम-आधारित प्रयास है, जिसके सकारात्मक परिणाम अब स्पष्ट रूप से सामने आ रहे हैं। आगामी समय में इस मॉडल को अन्य जिलों तथा प्रमुख हाइवे कॉरिडोरों पर भी विस्तारित किया जाएगा।
पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश ने अपने संबोधन के समापन पर कार्यशाला में उपस्थित “जीरो फेटेलिटी डिस्ट्रीक्ट“ ZFD के रूप में चिन्हित 20 सर्वाधिक जोखिम वाले जिलों के नोडल अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारियों से अपेक्षा व्यक्त की कि वे कार्यशाला के उद्देश्यों को मूर्त रूप देते हुए आगामी अवधि में अपने-अपने जनपदों में सड़क दुर्घटनाओं में कम से कम 50 प्रतिशत की कमी लाने के लक्ष्य को सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि यदि आप सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाकर जन-जीवन की रक्षा करते हैं, तो यह आपके लिए एक लाइफटाइम अचीवमेंट के समान होगा।
उक्त कार्यशाला का उद्घाटन दिनांक 17.11.2025 को अपर पुलिस महानिदेशक यातायात श्री ए. सतीश गणेश द्वारा किया गया। प्रारंभिक सत्र में डा. रोहित बलूजा अध्यक्ष, IRTE एवं डायरेक्टर CTM ने यातायात इंजीनियरिंग एवं सड़क अवसंरचना के कानूनी पहलुओं पर व्याख्यान दिया, जिसके बाद IRTE के श्री मोहित पाठक ने मोटर वाहन चालन विनियम-1 के कानूनी आधार पर प्रशिक्षण दिया। 18 नवम्बर को श्री एम.एस. उपाध्याय सेवानिवृत्त आईपीएस, संयुक्त पुलिस आयुक्त दिल्ली एवं लीड फेकल्टी IRTE ने दुर्घटना जांच, यातायात प्रबंधन व अन्य संबद्ध पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की, जबकि IRTE की सहायक प्राफेसर, फारेंसिक विज्ञान विभाग, श्रीमती श्रेया अरोड़ा ने फोरेंसिक सोच, दुर्घटना जांच प्रबंधन तथा साक्ष्य संग्रह/फोटोग्राफी पर मार्गदर्शन प्रदान किया।
