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रायपुर: राजधानी रायपुर के सबसे बड़े मेकाहारा अस्पताल की कड़वी सच्चाई, इलाज से ज्यादा लापरवाही, सफाई से ज्यादा गंदगी — राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल

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 विनोद कुमार पांडे ब्यूरो चीफ 



राजधानी रायपुर के सबसे बड़े मेकाहारा अस्पताल की कड़वी सच्चाई, इलाज से ज्यादा लापरवाही, सफाई से ज्यादा गंदगी — राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल


रायपुर।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मृति अस्पताल (मेकाहारा) — राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल — जहां से लाखों मरीजों की उम्मीदें जुड़ी हैं, वहां का हाल देखकर किसी का भी दिल दहल जाए।

स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति इतनी बदहाल है कि इलाज से ज्यादा परेशानी मरीजों और उनके परिजनों को अस्पताल की व्यवस्था, गंदगी, चोरी और स्टाफ की लापरवाही से झेलनी पड़ रही है।



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एमआरआई रिपोर्ट में चार से पांच दिन की देरी — मरीजों को लंबा इंतजार


अस्पताल में एमआरआई रिपोर्ट चार से पांच दिन बाद मिलती है, जबकि यही रिपोर्ट प्राइवेट में एक-दो दिन में मिल जाती है। इस देरी के कारण मरीजों को कई दिनों तक अस्पताल में रुकना पड़ता है और कई बार रिपोर्ट आने से पहले ही मरीज की हालत बिगड़ जाती है।


महंगी दवाएं और टेस्ट बाहर से लिखे जा रहे


सरकारी इलाज के नाम पर मरीजों को बाहर की दवाएं और जांचें लिखी जा रही हैं।

“आयुष्मान भारत” जैसी योजनाएं कागज़ों में ही सीमित हैं।

5 लाख रुपये तक मुफ्त इलाज के वादे के बावजूद मरीजों को महंगी दवाएं और टेस्ट बाहर से करवाने पड़ रहे हैं।



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रात में चोरी की घटनाएं आम — सुरक्षा पर सवाल


मरीजों और परिजनों के पैसे, कपड़े और मोबाइल रात में चोरी हो रहे हैं।

रात के दो से तीन बजे के बीच कई घटनाएं घट चुकी हैं, जबकि अस्पताल परिसर में दर्जनों महिला और पुरुष सुरक्षा गार्ड तैनात हैं।

सवाल उठता है — जब गार्ड इतनी संख्या में हैं तो चोरी क्यों रुक नहीं रही?



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नशे में धुत कंपाउंडर और स्टाफ


वार्ड नंबर 19 में पदस्थ एक कंपाउंडर रोजाना शराब के नशे में ड्यूटी पर आता है। तीसरी मंजिल पर भी एक अन्य स्टाफ शराब पीकर आता है।

गुटखा खाने पर मरीज की तलाशी ली जाती है, लेकिन नशे में स्टाफ पर कोई कार्रवाई नहीं होती।

यहां तक कि सुरक्षा गार्ड मरीजों के गुटखा-पान मसाला के पैकेट जब्त कर खुद ही दुकान में बेच देते हैं या खुद सेवन करते हैं।

यह गंभीर प्रश्न है — इन नशे में धुत कर्मचारियों पर कार्रवाई कौन करेगा?



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वार्ड 19 की भयावह स्थिति


वार्ड नंबर 19 में मच्छरों का आतंक है, खिड़कियों पर जाली तक नहीं लगी है, सिर्फ नीले पर्दे टंगे हैं।

बाथरूम छह दिनों से गंदगी से भरे हैं, पानी जाम है, दुर्गंध से मरीज बेहाल हैं।

सीसीटीवी कैमरे बंद पड़े हैं, जिससे चोरी और अनैतिक गतिविधियों की निगरानी असंभव हो गई है।



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मरीजों का दूध स्टाफ खुद पी जाता है या बेच देता है


मरीजों को मिलने वाला दूध स्टाफ और सफाईकर्मी खुद ले लेते हैं या बाहर बेच देते हैं।

यह अमानवीय हरकत सरकारी अनुदान के दुरुपयोग का खुला उदाहरण है।



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सफाईकर्मी मोबाइल में व्यस्त, काम ठप


वार्ड 19 की महिला सफाईकर्मी ड्यूटी के दौरान मोबाइल में व्यस्त रहती हैं।

यह न केवल अनुशासनहीनता है बल्कि सार्वजनिक सेवा नियमों का भी उल्लंघन है।



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स्टाफ रूम में सारी सुविधा — मरीजों के साथ सौतेला व्यवहार


नर्सिंग स्टाफ कंपाउंड.के कमरों में एसी, साफ टॉयलेट और आरामदायक व्यवस्था उपलब्ध है,

जबकि मरीज मच्छरों, गंदगी और बदबू में पड़े हैं।

यह भेदभाव अस्पताल प्रशासन की नीयत पर गंभीर सवाल खड़े करता है।



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प्राइवेट नाई के हाथ में मरीजों की ‘सफाई’


ऑपरेशन से पहले मरीजों के बाल और गुप्त अंग की सफाई के लिए अस्पताल में नियुक्त स्टाफ की बजाय बाहरी “नाई ठाकुर” को बुलाया जाता है, जो प्रति मरीज ₹100 से ₹150 तक वसूलता है।

यह व्यवस्था भ्रष्टाचार और मिलीभगत की ओर इशारा करती है।



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मरीजों को खाना एक बार से दोबारा नहीं दिया जाता — पेट न भरे तो बाहर से खरीदना मजबूरी  मरीजों के सामने


“छत्तीसगढ़ की माटी” में कहा जाता है — जब तक.दो थरिया भात ना मिले छत्तीसगढ़िया के मैरिज निवासी का पेट नहीं भरता!है

मगर यहां मरीज मजबूर हैं, उन्हें बाहर से खाना खरीदना पड़ता है। पूरी तरह से पेट भरने के लिए अस्पताल में दोबारा मांगने से नहीं दिया जाता है भोजन एक बार के बाद थाली में



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अधीक्षक कार्यालय तक गंदगी में डूबा


अस्पताल के अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर के कार्यालय में सीढी.जाली  तक पान-गुटखा के दाग और गंदगी का अंबार है।

जब जिम्मेदार अधिकारी का कार्यालय ही ऐसा है, तो अस्पताल के बाकी वार्डों की स्थिति समझी जा सकती है



 19 में मरीजों के परिजनों से करवाया जा रहा ड्रेसिंग


वार्ड 19 में मरीजों की ड्रेसिंग तक उनके परिजनों से करवाई जा रही है। मरीज के परिजनों ने बताया नहीं करते हैं ड्रेसिंग ठीक से इसलिए मेरा बेटा है तो मेरे को करना पड़ रहा है मन कर दिया गया यह कल करेंगे बाद में करेंगे

यह चिकित्सा सेवा के मानकों के खिलाफ है और मरीजों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।

 जबकि जिस मरीज की ड्रेसिंग खुद उसके पिता कर रहे थे उसके 90% जख्म गाव लगे थे


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जिम्मेदारी कौन लेगा?


मेकाहारा जैसे राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में यह लापरवाही केवल एक संस्थान की विफलता नहीं है —


यह छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य नीति, प्रशासनिक संवेदनशीलता और जनकल्याण की भावना पर भी गहरा सवाल है।


राजधानी के इस प्रमुख अस्पताल में चल रही बदहाल व्यवस्थाएं बताती हैं कि जनता के टैक्स से चलने वाली स्वास्थ्य प्रणाली कितनी खोखली हो चुकी है।

अब सवाल यह है — क्या मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री या अस्पताल प्रशासन में से कोई इस पर जिम्मेदारी लेगा? और विभागीय स्वास्थ्य अधिकारी सीएमओ सीएच. ओ.मो  बड़ी जिम्मेदारी पर खारे उतरेंगे राज्य के सबसे बड़े अस्पताल पर या सवाल जो खड़े हो रहे हैं इस पर किसकी जिम्मेदारी है




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