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कांकेर: शासकीय वीर गैंद सिंह महाविद्यालय: दो साल से अधूरा एक सौ बिस्तरों वाला छात्रावास भवन छात्रों का भविष्य अधर में, ठेकेदार पर होगी बड़ी कार्रवाई

 शासकीय वीर गैंद सिंह महाविद्यालय: दो साल से अधूरा एक सौ बिस्तरों वाला छात्रावास भवन छात्रों का भविष्य अधर में, ठेकेदार पर होगी बड़ी कार्रवाई।


पत्रकार स्वतंत्र नामदेव 

कांकेर जिला ब्यूरो 


शासकीय वीर गैंद सिंह महाविद्यालय पखांजूर  में 100 बिस्तरों वाले बालक छात्रावास भवन का निर्माण कार्य पिछले दो सालों से अधर में लटका हुआ है। छात्रों को बेहतर आवास सुविधा देने के उद्देश्य से शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट, ठेकेदार की कथित लापरवाही और उदासीनता के कारण अब एक बड़ी समस्या बन गया है। निर्माण कार्य अधूरा होने से जहां एक ओर छात्र मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं, वहीं दूसरी ओर सरकारी राशि का सदुपयोग भी सवालों के घेरे में है।

उक्त टेंडर मेसर्स बुद्धा कंस्ट्रक्शन बक्सर बिहार' नामक ठेकेदार को सौंपी गई थी, लेकिन पिछले ढेर साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी यह कार्य पूरा नहीं हो पाया है। इसमें विद्युतीकरण और पहुंच मार्ग जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी शामिल हैं। ठेकेदार की कार्यशैली पर अब लोक निर्माण विभाग  ने भी सख्त रुख अपनाया है।

 

इस मामले में पी डब्लूडी के अनुविभागीय अधिकारी विजय कुमार बांगर (लोक निर्माण विभाग, पखांजूर) ने ठेकेदार की कार्यप्रणाली पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। बांगर ने बताया कि ठेकेदार को कार्य में विलंब के कारण अब तक दो कारण बताओ नोटिस (चिट्ठियां) जारी की जा चुकी हैं। इसके अलावा, प्रेस के माध्यम से छड़ की गुणवत्ता खराब होने की जानकारी मिली है। इसकी तत्काल जाँच कराई जाएगी। जाँच के उपरांत यह देखा जाएगा कि क्या कार्य में इस्तेमाल सामग्री गुणवत्ता योग्य है या नहीं। यदि छड़ खराब पाया जाता है, तो ठेकेदार को तत्काल नया छड़ उपयोग करने का आदेश दिया जाएगा।एसडीओ बांगर ने ठेकेदार को अंतिम चेतावनी देते हुए कहा कि यदि अब भी कार्य को प्राथमिकता के आधार पर और शीघ्रता से शुरू नहीं किया जाता है, तो विभाग सख्त कदम उठाने को मजबूर होगा।यदि ठेकेदार जल्द से जल्द कार्य प्रारंभ नहीं करता है, तो उनका टेंडर तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया जाएगा और इस कार्य को पूरा करने के लिए दुबारा टेंडर लगाया जाएगा।"


दो साल से कार्य अधूरा होने के कारण महाविद्यालय के छात्रों में निराशा है। यह छात्रावास भवन केवल एक इमारत नहीं है, बल्कि दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले छात्रों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करने का आधार है। निर्माण में हो रही देरी सीधे तौर पर इन छात्रों के शैक्षणिक और सामाजिक भविष्य को प्रभावित कर रही है। अब देखना यह है कि लोक निर्माण विभाग की यह अंतिम चेतावनी ठेकेदार पर कितना असर करती है, 


या फिर यह प्रोजेक्ट एक बार फिर कानूनी और प्रशासनिक पचड़ों में फंसकर रह जाता है?



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