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रामनगर, बाराबंकी: मुख्यमंत्री, राज्यपाल और प्रमुख सचिव तक पहुँची शिकायत; सोशल मीडिया पर भी गूंजा मामला

 क्राइम ब्यूरो _ मोहम्मद अहमद 

जिला बाराबंकी 

बाराबंकी आरटीआई प्रकरण: तहसील प्रशासन पर जवाबदेही से बचने का आरोप, वकील ने उठाए सवाल*


*मुख्यमंत्री, राज्यपाल और प्रमुख सचिव तक पहुँची शिकायत; सोशल मीडिया पर भी गूंजा मामला*


रामनगर, बाराबंकी। जिले के रामनगर तहसील प्रशासन की कार्यप्रणाली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। लखनऊ के अधिवक्ता जय प्रकाश यादव ने रामनगर तहसीलदार पर आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना को जानबूझकर न देने और पत्राचार की तिथियों में हेराफेरी करने का गंभीर आरोप लगाया है। अधिवक्ता ने इस संबंध में मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्रमुख सचिव (राजस्व विभाग) और जिलाधिकारी बाराबंकी को रजिस्टर्ड डाक से शिकायत भेजी है। अधिवक्ता यादव का कहना है कि उन्होंने 23 मई 2025 को सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 6(1) के तहत तहसील प्रशासन से राजस्व रिकॉर्ड की जानकारी मांगी थी। नियमानुसार 30 दिनों के भीतर सूचना मिलनी चाहिए थी, परंतु 22 जून तक कोई जवाब नहीं मिला। तिथि में हेराफेरी का आरोप

3 जुलाई को जब अधिवक्ता ने तहसीलदार से फोन पर संपर्क किया तो जवाब मिला कि पत्र पहले ही भेजा जा चुका है। लेकिन डाक की ट्रैकिंग से जो विवरण सामने आया, उसने सवाल खड़े कर दिए। रजिस्टर्ड डाक नंबर RU607457701IN और RU607457825IN के मुताबिक दोनों पत्र उसी दिन दोपहर 2:23 बजे पोस्ट किए गए, जबकि फोन पर बातचीत सुबह 11:37 बजे हुई थी। प्राप्त पत्र में सूचना देने की बजाय उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली का हवाला देकर आवेदन निरस्त कर दिया गया। पत्र में तिथि 3 जुलाई होने के बावजूद उसमें काट-छांट कर 28 जून लिखी गई, जिससे अधिवक्ता ने जानबूझकर गड़बड़ी किए जाने की आशंका जताई है। "सूचना देना संभव था" अधिवक्ता यादव के अनुसार जो जानकारी मांगी गई थी, वह सामान्य राजस्व अभिलेखों में उपलब्ध है और आसानी से दी जा सकती थी। उन्होंने इसे आरटीआई अधिनियम की धारा 7(1), 18(1) और 20 का उल्लंघन बताया है। नियमों के अनुसार, सूचना न देने पर प्रतिदिन ₹250 का जुर्माना और जिम्मेदार अधिकारियों पर अनुशासनिक कार्रवाई का प्रावधान है। जवाबदेही की मांग, सोशल मीडिया पर बहस: अधिवक्ता ने तहसील प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए निष्पक्ष जांच और मांगी गई सूचना प्रदान करने की मांग की है। उनका कहना है कि अगर न्याय नहीं मिला तो वे न्यायालय का भी रुख कर सकते हैं। इस पूरे प्रकरण को लेकर ट्विटर (एक्स) पर भी बहस तेज हो गई है। कई यूजर्स ने पारदर्शिता की धज्जियां उड़ाए जाने पर चिंता जताई है।प्रशासन की चुप्पी: फिलहाल इस मामले में तहसील प्रशासन या संबंधित अधिकारियों की कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। विशेषज्ञों की राय: विधि विशेषज्ञों का मानना है कि सूचना के अधिकार के प्रावधानों का अनुपालन प्रत्येक अधिकारी का संवैधानिक दायित्व है। यदि ऐसे मामलों में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं बरती जाती, तो इससे आरटीआई अधिनियम की गरिमा पर प्रश्नचिह्न लग सकते हैं।

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