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बोकारो: लोक अदालत: एक प्रश्नचिह्न या जनता की उम्मीदों का हनन?

 लोकेशन बोकारो से नेशनल हैड और लीगल एडवाइजर अधिवक्ता राजेश कुमार की कलम से।

 एंकर बोकारो में स्थायी लोक अदालत: एक प्रश्नचिह्न या जनता की उम्मीदों का हनन? बोकारो, झारखंड का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर, जहां स्थायी लोक अदालत की स्थापना जनता को त्वरित और सस्ता न्याय प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी, आज एक गंभीर सवाल के घेरे में है। "काम ना काज का, सौ मन अनाज का" - यह कहावत बोकारो की स्थायी लोक अदालत पर पूरी तरह सटीक बैठती है।


 सूत्रों के अनुसार, इस अदालत पर सरकार हर महीने लगभग 10 लाख रुपये खर्च करती है, लेकिन इसका योगदान और प्रभावशीलता शून्य के बराबर है। क्या ऐसी स्थिति में स्थायी लोक अदालत का अस्तित्व उचित है, या इसे बंद कर देना चाहिए? यह सवाल न केवल सरकार के लिए, बल्कि हर उस नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है, जिसका पैसा इस व्यवस्था पर खर्च हो रहा है।स्थायी लोक अदालत का उद्देश्य और वास्तविकताविधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 22-बी के तहत स्थायी लोक अदालतों की स्थापना जनहित सेवाओं जैसे बिजली, पानी, परिवहन, डाक, और बीमा से संबंधित विवादों को सुलह-समझौते के जरिए निपटाने के लिए की गई थी। यह व्यवस्था विशेष रूप से उन मामलों के लिए बनाई गई थी, जो मुकदमों में बदलने से पहले ही हल हो सकें। बोकारो में स्थायी लोक अदालत में एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में दो अन्य सदस्यों की कमेटी कार्यरत है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, इस अदालत में न तो कोई केस निपटाया जा रहा है और न ही किसी विवाद का समाधान हो रहा है।

सवाल उठता है कि जब नियमित अदालतें ही अपने कार्यभार को संभाल रही हैं, तो स्थायी लोक अदालत की क्या आवश्यकता है? अगर इस अदालत में एक भी केस का निपटारा नहीं हो रहा, तो यह जनता के धन का दुरुपयोग ही कहा जाएगा।शून्य उपलब्धियां, बढ़ता खर्चसूत्रों के हवाले से पता चलता है कि बोकारो की स्थायी लोक अदालत में कार्यरत लोग केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए उपस्थित होते हैं। न तो कोई सुनवाई होती है, न सुलह-समझौते का प्रयास किया जाता है, और न ही किसी केस का समाधान होता है। अगर पूरे कार्यकाल का रिकॉर्ड देखा जाए, तो एक भी केस के निपटारे का दावा नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद, सरकार हर ماه 10 लाख रुपये खर्च कर रही है, जो अंततः जनता की मेहनत की कमाई से ही आता है।यह स्थिति न केवल निराशाजनक है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि क्या ऐसी व्यवस्था को बनाए रखने का कोई औचित्य है? स्थायी लोक अदालत, जो जनता को त्वरित न्याय देने का वादा करती है, बोकारो में केवल एक खर्चीला ढांचा बनकर रह गई है।

अस्थायी लोक अदालत बनाम स्थायी लोक अदालत अस्थायी लोक अदालतें, जो समय-समय पर आयोजित की जाती हैं, जैसे राष्ट्रीय लोक अदालत, ने कई मामलों में प्रभावी परिणाम दिए हैं। उदाहरण के लिए, दुमका में 2024 में आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत में 10,560 वादों का निपटारा किया गया और 23 करोड़ से अधिक की राशि वसूल की गई। इसी तरह, छत्तीसगढ़ में 2024 की राष्ट्रीय लोक अदालत में 9 लाख से अधिक मामलों का निपटारा हुआ। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि अस्थायी लोक अदालतें जनता के लिए उपयोगी साबित हो रही हैं। इसके विपरीत, बोकारो की स्थायी लोक अदालत की स्थिति निराशाजनक है। अगर नियमित अदालतें और अस्थायी लोक अदालतें ही विवादों का निपटारा कर सकती हैं, तो स्थायी लोक अदालत का क्या औचित्य है? खासकर तब, जब इसका कोई ठोस योगदान नजर नहीं आता।क्या स्थायी लोक अदालत को बंद कर देना चाहिए?बोकारो की स्थायी लोक अदालत की स्थिति को देखते हुए यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या इसे बंद कर देना चाहिए। जनता का पैसा ऐसी व्यवस्था पर खर्च करना, जो न तो न्याय दे रही है और न ही विवादों का समाधान कर रही है, किसी भी दृष्टिकोण से उ悉System: I'm sorry, but it seems your message was cut off. I understand you're asking for an article in Hindi about the Permanent Lok Adalat in Bokaro, questioning its effectiveness and whether it should be closed due to its alleged inefficiency and high costs. Below is the continuation and completion of the article you requested, addressing the concerns about the Permanent Lok Adalat in Bokaro, its lack of case disposals, and the question of whether it should be shut down.क्या स्थायी लोक अदालत को बंद कर देना चाहिए?बोकारो की स्थायी लोक अदालत की स्थिति को देखते हुए यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या इसे बंद कर देना चाहिए। जनता का पैसा ऐसी व्यवस्था पर खर्च करना, जो न तो न्याय दे रही है और न ही विवादों का समाधान कर रही है, किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं ठहराया जा सकता। 

स्थायी लोक अदालत का उद्देश्य जनता को सस्ता और त्वरित न्याय प्रदान करना था, लेकिन बोकारो में यह व्यवस्था अपनी मूल भावना से भटक चुकी है।सरकार के सामने विकल्प और सुझावपारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करें: यदि स्थायी लोक अदालत को बनाए रखना है, तो इसके कार्यों में पारदर्शिता लाने की आवश्यकता है। हर महीने केस निपटारे का रिकॉर्ड सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि जनता को पता चले कि उनका पैसा कहां खर्च हो रहा है।प्रशिक्षण और जागरूकता: कई बार स्थायी लोक अदालत की प्रभावशीलता की कमी जनता में इसके प्रति जागरूकता की कमी के कारण भी हो सकती है। लोगों को इसके लाभों और प्रक्रिया के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जा सकते हैं। साथ ही, अदालत के सदस्यों को और प्रभावी ढंग से काम करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।अस्थायी लोक अदालतों पर ध्यान: अस्थायी लोक अदालतों ने कई राज्यों में बेहतर परिणाम दिए हैं। सरकार को चाहिए कि वह बोकारो में स्थायी लोक अदालत के बजाय नियमित अंतराल पर अस्थायी लोक अदालतों का आयोजन करे, जो अधिक प्रभावी सिद्ध हो रही हैं।बंद करने का विकल्प: यदि स्थायी लोक अदालत का प्रदर्शन लगातार शून्य रहता है, तो सरकार को इसके बंद करने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। जनता का पैसा बेकार खर्च करने के बजाय, इस संसाधन को अन्य न्यायिक या सामाजिक कल्याण योजनाओं में लगाया जा सकता है।


निष्कर्षबोकारो की स्थायी लोक अदालत आज एक प्रश्नचिह्न बन चुकी है। अगर यह व्यवस्था वास्तव में एक भी केस का निपटारा नहीं कर रही है, तो इसका औचित्य सवालों के घेरे में है। सरकार को इस पर तत्काल ध्यान देना चाहिए और या तो इसे और प्रभावी बनाना चाहिए या फिर इसे बंद कर संसाधनों का बेहतर उपयोग करना चाहिए। जनता का पैसा जनता की भलाई के लिए ही खर्च होना चाहिए, न कि ऐसी व्यवस्था पर जो केवल कागजों पर चल रही है। यह सवाल सरकार को सोचना है, और जवाब भी जनता को देना है।This article addresses the concerns about the Permanent Lok Adalat in Bokaro, highlighting its alleged inefficacy, high costs, and lack of case disposals, while questioning its necessity in the presence of regular courts and temporary Lok Adalats. It also provides suggestions for improvement or closure, emphasizing the need for accountability and efficient use of public funds.If you have specific details or additional points you'd like included, or if you meant something else by your incomplete sentence, please clarify, and I can refine the article further.

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