नेशनल हेड लीगल एडवाइजर अधिवक्ता राजेश कुमार की कलम से लिखनी
शीर्षक। माँ-बाप: एक अनमोल धरोहर, जिसे हम भूल रहे हैं आज जब मैं यह लिख रहा हूँ, मेरे मन में एक तूफान सा उठ रहा है। आँखों में आँसू हैं, जो न जाने कब सूख गए, और दिल में एक टीस जो बार-बार पूछ रही है—हम कब अपनी जड़ों को भूल गए? हम कब उस मिट्टी को भूल गए, जिसने हमें सींचा, पाला और इस काबिल बनाया कि आज हम समाज में सिर उठाकर जी सकें? यह कहानी हर उस घर की है, जहाँ माँ-बाप ने अपनी नींदें हराम कीं, अपना पेट काटा, ताकि उनके बच्चे इंजीनियर, डॉक्टर, आईएएस, वकील बन सकें। लेकिन यह भी उस समाज की सच्चाई है, जहाँ वही बच्चे अपने माँ-बाप को बुढ़ापे में सड़कों पर छोड़ रहे हैं, वृद्धाश्रम में ठूँस रहे हैं, या उनकी ज़िंदगी को बोझ समझ रहे हैं। मां-बाप का त्याग: एक अनकहा बलिदानक्या आपने कभी सोचा है कि आपके आज के मुकाम के पीछे कितनी रातें आपके माँ-बाप ने भूखे बिताई होंगी? कितने दिन उन्होंने मेहनत की होगी, ताकि आपकी किताबें, आपकी फीस, आपके सपने पूरे हो सकें? वह माँ, जो रात-रात भर जागकर आपको सुलाती थी, वह पिता, जो अपने कंधों पर आपको बिठाकर दुनिया दिखाता था—क्या उनका त्याग इतना सस्ता है कि हम उन्हें एक कोने में भी जगह न दे सकें? वह माँ जो आपके लिए अपनी हर खुशी कुर्बान कर देती थी, वह पिता जो आपके लिए दिन-रात मजदूरी करता था—क्या उनका मूल्य अब केवल वृद्धाश्रम की चार दीवारी है?कलयुग की कड़वी सच्चाईआज का युग हमें क्या सिखा रहा है? बेटा अपनी माँ को मार रहा है, बहू सास-ससुर को घर से निकाल रही है, और बच्चे अपने माता-पिता को बोझ समझकर सड़कों पर छोड़ रहे हैं। कितने दुख की बात है कि जिन माँ-बाप ने हमें प्यार से पाला, हमें पढ़ाया, हमें इस काबिल बनाया, आज वही बुढ़ापे में भीख माँगने को मजबूर हैं। वह माँ-बाप, जो कभी हमारे लिए भगवान थे, आज वृद्धाश्रम की ठंडी दीवारों में सिसक रहे हैं। और सबसे दुखद यह है कि जब उनसे पूछा जाता है, “तुम्हें इस हाल में किसने पहुँचाया?” तो उनके आँसुओं के बीच भी अपने बच्चों के लिए आशीर्वाद ही निकलता है।क्या हम वाकई इंसान हैं?
सोचिए, वह दिन जब आप माँ की गोद में लेटकर उनकी लोरियाँ सुनते थे। वह दिन जब पिता के कंधों पर बैठकर हँसते थे। क्या उन पलों की कीमत इतनी सस्ती है कि हम उन्हें भूल जाएँ? आज हम विदेशों में नौकरी कर रहे हैं, बड़े-बड़े घरों में रह रहे हैं, लेकिन अपने माँ-बाप के लिए एक छोटा सा कोना नहीं निकाल पा रहे। यह कैसी विडंबना है कि जिस देश में माँ-बाप को भगवान का दर्जा दिया जाता है, उसी देश में वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है।एक अपील, एक संदेश
यह लेख केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक पुकार है। अपने माँ-बाप को सम्मान दीजिए। उनके त्याग को याद कीजिए। वह दिन भूलिए मत, जब उन्होंने आपके लिए अपने सपने छोड़ दिए। अगर आज आप अपने माता-पिता का ख्याल नहीं रखेंगे, तो कल आपके बच्चे भी आपको उसी राह पर छोड़ देंगे। बहुओं से निवेदन है—अपनी सास-ससुर को अपने माँ-बाप का दर्जा दीजिए। अगर हर घर में यह भावना जाग जाए, तो शायद भारत में कभी कोई माँ-बाप वृद्धाश्रम का मुँह न देखे।आइए, भारत को फिर से महान बनाएँ
जिस दिन हर बेटा-बेटी अपने माँ-बाप के महत्व को समझ लेगा, उस दिन भारत सही मायनों में महान होगा। आइए, हम सब मिलकर यह प्रण लें कि अपने माता-पिता को वह प्यार, सम्मान और सुरक्षा देंगे, जो उनका हक है। क्योंकि माँ-बाप नहीं, तो हम नहीं। उनकी दुआएँ नहीं, तो हमारा कोई वजूद नहीं।अंत में
उन माँ-बाप को नमन, जिन्होंने हमें बनाया। और उन बच्चों को एक सवाल—जब आप बूढ़े होंगे, तो क्या चाहेंगे कि आपके बच्चे भी आपके साथ वही करें, जो आप आज अपने माँ-बाप के साथ कर रहे हैं? सोचिए, और अपने माता-पिता के लिए आज कुछ कीजिए। क्योंकि माँ-बाप संयोग से नहीं, किस्मत से मिलते हैं। उनकी कीमत समझिए, वक्त रहते।