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कांकेर: दशकों से विकास की राह ताकता एक उपेक्षित गाँव मातालकुड़ुम

 दशकों से विकास की राह ताकता एक उपेक्षित गाँव मातालकुड़ुम।


संवाददाता/ स्वतंत्र नामदेव कांकेर ब्यूरो

ग्राम पंचायत गोंडाहुर के आश्रित एक छोटा-सा गाँव मातालकुड़ुम जहाँ लगभग 15 से अधिक परिवार और 70-80 लोग रहते हैं, आज भी 21वीं सदी में मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है।


 यह गाँव बिजली, उचित पहुंच मार्ग और पीने के शुद्ध पानी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए दशकों से संघर्ष कर रहा है। 


यहाँ के ग्रामीणों का दर्द यह है कि उन्हें सिर्फ़ चुनावी वादों की घुट्टी पिलाई जाती है, और चुनाव खत्म होते ही उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता।


*तीन दशकों की उपेक्षा और जनप्रतिनिधियों का मौन*


मातालकुड़ुम, के ग्रामीण बताते हैं कि वे पिछले 25 से 30 वर्षों से इसी गाँव में निवास कर रहे हैं। इन दशकों में कई सरकारें आईं और गईं, कई जनप्रतिनिधि चुने गए, लेकिन मातालकुड़ुम की तस्वीर नहीं बदली। ग्रामीण रेनू राम उईके, उत्तम नेताम, सुधा नेताम, का कहना है कि उन्हें केवल चुनाव के समय ही जनप्रतिनिधियों के दर्शन होते हैं, जब वे वोट मांगने के लिए गाँव के कच्चे रास्तों पर चलकर आते हैं। चुनाव संपन्न होते ही, ये वादे हवा हो जाते हैं और गाँव की समस्याएँ जस की तस बनी रहती हैं।



*अँधेरे में डूबा गाँव, दुर्गम रास्ते और पानी का संकट*


 आज भी मातालकुड़ुम गांव में बिजली के खंभे तक नहीं लगे हैं, जिससे शाम ढलते ही पूरा गाँव अँधेरे में डूब जाता है। बच्चे मोमबत्ती या दीये की रोशनी में पढ़ाई करने को मजबूर हैं, और रात में दुर्घटनाओं का डर बना रहता है। 


गाँव तक पहुँचने के लिए कोई पक्का रास्ता नहीं है, जिससे बारिश के मौसम में यह गाँव पूरी तरह से मुख्य मार्ग से कट जाता है।


 बीमारों को अस्पताल ले जाने या रोज़मर्रा की ज़रूरत का सामान लाने में ग्रामीणों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। 


*सबसे गंभीर समस्या शुद्ध पेयजल की है।*


गाँव में पीने के पानी के लिए एक पुराना नल है जिसमें से आर्यन युक्त लाल पानी निकट है जो पीने योग्य नहीं है, 


 ग्रामीण दूषित जल स्रोतों (झड़ियां का पानी) पर निर्भर रहने को मजबूर हैं, जिससे आए दिन जल जनित बीमारियाँ फैलने का खतरा बना रहता है।


*गांव में नहीं है शिक्षा व्यवस्था*


ग्रामीण राकेश उसेंडी, शुक्लू उसेंडी, रामभरोसे, का कहना है कि हम ग्रामीणों को रोज मर्रा की समस्याओं का सामना करना पड़ता है वही नोनिहालों के भविष्य को बनाने के लिए शिक्षा व्यवस्था भी लचर है, गांव में आंगनबाड़ी, प्राथमिक शाला नहीं है, हम ग्रामीणों की मांग है कि गांव में आंगनबाड़ी केंद्र एवं प्राथमिक शाला खोली जाए।


कब जागेगी सरकार और प्रशासन?



मातालकुड़ुम की यह स्थिति ग्रामीण भारत में विकास के दावों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है। एक ऐसे समय में जब देश डिजिटल इंडिया और स्मार्ट गांवों की बात कर रहा है, तब भी कई गाँव मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं, मातालकुड़ुम के ग्रामीण अब स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनकी समस्याओं पर तत्काल ध्यान दिया जाए। उनकी मांग है कि गाँव में बिजली पहुँचाई जाए, पक्की सड़क का निर्माण हो और शुद्ध पेयजल की स्थायी व्यवस्था की जाए, ताकि वे भी एक सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन जी सकें।


 क्या सरकार और संबंधित अधिकारी इस उपेक्षित गाँव की पुकार सुनेंगे, या मातालकुड़ुम के ग्रामीण यूँ ही विकास की राह ताकते रहेंगे? यह एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब अभी मिलना बाकी है।


इस संबंध में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत कांकेर हरीश मंडावी से बात करने पर उन्होंने बताया, मुख्यत: प्रत्येक गांव में मूलभूत सुविधाएं होनी चाहिए मै जल्द ही जनपद पंचायत सीईओ की टीम को मातालकुड़ुम गांव भेज कर जांच करवाता हूं।


इस संबंध में सरपंच ग्राम पंचायत गोंडाहुर को फोन किया गया परंतु उनके द्वारा फोन रिसीव नहीं किया गया।


इस संबंध में कलेक्टर जिला उत्तर बस्तर कांकेर से बात करने का प्रयास किया गया परंतु उनके द्वारा फोन रिसीव नहीं किया गया।

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