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मिल्कीपुर: समाजवादी पार्टी मिल्कीपुर सीट हारने के बड़े कारण।

 संवाददाता: एम.एस वर्मा, सोशल मीडिया प्रभारी उत्तर प्रदेश, 6397329270

‘अयोध्या के मिल्कीपुर में भी भाजपा को शानदार जीत मिली है। हर वर्ग ने भारी संख्या में भाजपा के लिए मतदान किया। आज देश तुष्टिकरण नहीं, भाजपा के संतुष्टिकरण की पॉलिसी को चुन रहा है।’

मोदी का यह दिल्ली में दिया गया विजयी भाषण है। मोदी ने मिल्कीपुर की जीत का जिक्र करके देश को संदेश देने की कोशिश की है कि हम अयोध्या फिर जीत गए…। अंदाजा लगा सकते हैं, मिल्कीपुर की जीत भाजपा के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।

भाजपा ने 8 महीने में सपा से यह सीट छीन ली, बड़े अंतर से। समाजवादी पार्टी ने मिल्कीपुर विधायक अवधेश प्रसाद को सांसद का टिकट दिया और वह जीत गए। तभी से सीट खाली थी। सपा ने अवधेश के बेटे अजीत प्रसाद को टिकट दिया तो भाजपा ने नए और साफ-सुथरे चेहरे पर दांव लगाया

लोकसभा चुनाव में 7,733 वोटों से पीछे रहने वाली भाजपा ने 61 हजार से ज्यादा के मार्जिन से जीत हासिल की। भाजपा और योगी देश में संदेश देना चाहते थे कि हम अयोध्या में कमजोर नहीं हुए। यह रणनीति कामयाब रही।

इस जीत के मायने, हार-जीत के कारण और उत्तर प्रदेश की सियासत में इस जीत का क्या असर होने वाला है, इसे 11 सवालों के जवाब में समझिए…

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1- मिल्कीपुर की जीत भाजपा के लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?

1967 में अस्तित्व में आई मिल्कीपुर सीट पर 17 बार चुनाव हुए। इससे पहले भाजपा केवल 2 बार ही जीती। मिल्कीपुर सीट अयोध्या (फैजाबाद) संसदीय क्षेत्र में आती है। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के 3 महीने बाद हुए हुए लोकसभा चुनाव में अयोध्या हारने पर भाजपा की देश-दुनिया में बदनामी हुई। इसलिए भी मिल्कीपुर को जीतना भाजपा के लिए प्रतिष्ठा वापस पाने की लड़ाई थी।


L2- तो क्या भाजपा ने मिल्कीपुर जीतकर अयोध्या हार का बदला लिया?

बिलकुल। भाजपा यही जता भी रही है। अयोध्या लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा सीटें आती हैं। लोकसभा चुनाव में अयोध्या को छोड़कर बाकी 4 पर भाजपा हारी थी। मिल्कीपुर में 7,733 वोटों से भाजपा हारी थी। अब 61 हजार 636 वोटों के बड़े अंतर से सपा प्रत्याशी को हराकर भाजपा यही बता रही है कि अयोध्या हम नहीं हारे हैं। भाजपा यह नरेटिव भी बनाएगी कि संविधान और आरक्षण का मुद्दा जहां से उठा, वहीं खत्म हो गया।

3- सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग से क्या भाजपा यह चुनाव जीत पाई?

उपचुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप कोई नई बात नहीं है। पहले की सरकारों में भी यह होता रहा है और अब भी हो रहा है। कुछ हजार का अंतर तो ठीक है लेकिन 61 हजार का मार्जिन अकेले सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग से हासिल करना थोड़ा मुश्किल है। बूथ प्रबंधन से लेकर भाजपा की टाइट चुनावी रणनीति इस जीत में अहम वजह रही है। पार्टी ने हर जाति के वोटर को साधने के लिए उस जाति के प्रभावी लीडर को जिम्मेदारी सौंपी। यादवों को साधने के लिए विधायक रामचंद्र यादव, ब्राह्मणों को साधने लिए खब्बू तिवारी और ठाकुरों को साधने के लिए लल्लू सिंह और सपा के बागी अभय सिंह को लगाया।


4- इस जीत का अभी और आगे क्या कोई भारी असर पड़ने वाला है? 

1 सीट से नंबर में कोई अंतर नहीं आएगा। फर्क दिखेगा लीडरशिप के कामकाज में, उनके कॉन्फिडेंस में। विधानसभा के अंदर योगी और उनकी सरकार ज्यादा हमलावर होगी। लोकसभा चुनाव में 29 सांसद गंवाने के बाद उत्तर प्रदेश की भाजपा लीडरशिप में निराशा थी, 2027 के चुनाव के नतीजों को लेकर सवाल उठाए जाने लगे थे। पार्टी में अंतर्कलह भी सामने आई। 9 सीटों के उपचुनाव और अब मिल्कीपुर के नतीजों के बाद तय हो गया कि सीएम योगी आगे और ताकतवर होंगे।

5- कैंडिडेट चयन का हार-जीत में कितना असर रहा?

इसका बड़ा असर रहा। समाजवादी पार्टी ने परंपरागत परिवार को टिकट दिया। सांसद अवधेश प्रसाद ने अपने बेटे अजीत प्रसाद को मैदान में उतारा। भाजपा ने परिवारवाद का मुद्दा जोरशोर से उठाते हुए बिलकुल नए चेहरे को मैदान में उतारा। भाजपा प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान पहली बार चुनाव लड़े। पेशे से कपड़ा व्यापारी चंद्रभानु की साफ-सुथरी इमेज ने वोटरों को प्रभावित किया।


6- सपा कार्यकर्ताओं पर रेप केस, रिजल्ट पर इसका कोई प्रभाव दिखा?

दलित युवती से रेप में अयोध्या के सपा कार्यकर्ता मुईद खान फिर नवाब सिंह यादव का नाम आया। इन्होंने अपराध किया है या नहीं, यह तो कोर्ट के फैसले से पता चलेगा लेकिन भाजपा यह माहौल बनाने में कामयाब रही कि इनके लोग अपराध में लिप्त हैं। वोटर्स में इसका ज्यादा न सही थोड़ा असर रहा है। बेटियों की सुरक्षा बड़ा मुद्दा बनी रही।

7- सपा प्रत्याशी अजीत प्रसाद अपने बूथ पर भी हार गए, इसका क्या मतलब हुआ? 

इस बूथ पर सामान्य खासकर ब्राह्मण वोटर्स ज्यादा हैं। अवधेश प्रसाद पुराने और जमे जमाए नेता हैं, इसलिए उन्हें इनके वोट मिलते रहे। अजीत प्रसाद की छवि आस-पड़ोस में ठीक नहीं है। उन पर जमीन कब्जाने, आम पब्लिक से विवाद करने जैसे आरोप भी थे। परिवारवाद बड़ा मुद्दा था ही, इसलिए बूथ के वोटर्स ने भी इन्हें हरा दिया।

8- 403 सीट की विधानसभा में एक सीट बढ़ने से क्या फर्क पड़ जाएगा?

आंकड़ों की बात करे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन भाजपा मनौवैज्ञानिक रूप से ताकतवर हो जाएगी। खासकर योगी के तेवर फिर देखने लायक होंगे। 2022 में भाजपा ने 255 सीटें जीती, पिछले उपचुनाव के बाद यह संख्या बढ़कर 257 हो गई, अब यह 258 हो गई। एनडीए के 291 विधायक हैं। बहुमत के लिए 202 सीटें ही चाहिएं।

9- क्या सपा का पीडीए अब असरदार नहीं रहा?

ऐसा नहीं कह सकते। राजनीति में समीकरण बनते-बिगड़ते देर नहीं लगती। अलबत्ता कुंदरकी, मीरापुर के बाद मिल्कीपुर जीतकर भाजपा ने यह जताने की कोशिश जरूर की है कि सपा का पीडीए फार्मूला असरदार नहीं रहा और इसकी काट उन्होंने ढूंढ ली है।

10- इस हार में समाजवादी पार्टी के लिए क्या संदेश दिखता है?

लड़ाई बड़ी हो या छोटी, ताकत पूरी लगानी पड़ेगी। सीएम योगी ने यहां 6 महीने में 6 सभाएं की। हर बूथ की माइक्रो वर्किंग की। भाजपा का जो वोटर नहीं निकलता था, उसे इस बार पोलिंग बूथ तक पहुंचाया। परिवारवाद और पुराने चेहरों की बजाय नए और साफ-सुथरा कैंडिडेट को उतारना होगा। सपा को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। पीडीए के अलावा तरकस में नए तीर-कमान लाने होंगे।m

11- चुनाव से ठीक पहले अवधेश प्रसाद के रोने का भी वोटरों पर कोई असर नहीं हुआ? 

बिलकुल हुआ…लेकिन नेगेटिव। सांसद जिस ढंग से रोये, वह वोटरों को शायद पसंद नहीं आया। लोग कह रहे थे- सांसद के रोने में फीलिंग नहीं थी।

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