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मनेन्द्रगढ़–चिरमिरी–भरतपुर: कानून व्यवस्था के जिम्मेदार ही बेहाल: चिरमिरी में पुलिस व आबकारी विभाग को महिला–पुरुष बल का गंभीर अभाव”

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 विनोद कुमार पांडे ब्यूरो चीफ 



33वें नवगठित एमसीबी जिले का सबसे बड़ा शहर चिरमिरी असुरक्षित: पुलिस और आबकारी विभाग भारी स्टाफ संकट में, सत्ताधारी सरकार की अनदेखी उजागर”

 





“कानून व्यवस्था के जिम्मेदार ही बेहाल: चिरमिरी में पुलिस व आबकारी विभाग को महिला–पुरुष बल का गंभीर अभाव”

छत्तीसगढ़ के नवगठित 33वें जिला मनेन्द्रगढ़–चिरमिरी–भरतपुर (एमसीबी) का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र चिरमिरी आज गंभीर सुरक्षा संकट से जूझ रहा है। जिला गठन को दो वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बावजूद शहर की कानून-व्यवस्था संभालने वाले पुलिस प्रशासन और जिला आबकारी विभाग में महिला एवं पुरुष सुरक्षा बलों की भारी कमी अब खुलकर सामने आ गई है।


इस कमी का सीधा असर शहर में बढ़ती आपराधिक गतिविधियों, अवैध शराब, महुआ बिक्री और मादक पदार्थों के कारोबार पर पड़ रहा है। सीमित स्टाफ के सहारे पुलिस और आबकारी विभाग अपने दायित्व निभाने को मजबूर हैं, जिससे कार्रवाई और निगरानी में लगातार कठिनाइयाँ आ रही हैं।


पुलिस बल की कमी, अपराध नियंत्रण में बाधा


चिरमिरी थाना क्षेत्र में उपलब्ध पुलिस बल से पूरे शहर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की प्रभावी निगरानी कर पाना बेहद कठिन हो गया है। महिला अपराधों से जुड़े मामलों में महिला पुलिस बल की कमी बड़ी समस्या बनी हुई है, वहीं पुरुष बल की कमी के कारण नियमित गश्त, दबिश और त्वरित कार्रवाई सीमित रह जाती है।

पूर्व में कई थाना प्रभारियों द्वारा पत्रकारों को अवगत कराया जा चुका है कि “सीमित स्टाफ में ही हर मोर्चे पर काम करना पड़ता है”, लेकिन इसके बावजूद आज तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला।


आबकारी विभाग भी स्टाफ संकट में


स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब अवैध शराब और मादक पदार्थों पर लगाम लगाने वाला आबकारी विभाग भी भारी स्टाफ की कमी से जूझ रहा है। आबकारी अधिकारियों ने बातचीत में बताया कि महिला और पुरुष—दोनों प्रकार के सुरक्षा बलों की कमी के चलते विभाग को कई बार पुलिस के साथ मिलकर संयुक्त कार्रवाई करनी पड़ती है।

जबकि हकीकत यह है कि अवैध शराब और मादक पदार्थों पर नियंत्रण की मुख्य जिम्मेदारी आबकारी विभाग की ही होती है, लेकिन विभाग के पास पर्याप्त मानव संसाधन न होने से कार्रवाई की रफ्तार प्रभावित हो रही है।

वीआईपी कार्यक्रमों में बाहर से बुलाना पड़ता है बल


चिरमिरी, मनेन्द्रगढ़ और भरतपुर जैसे बड़े क्षेत्र में जब भी किसी मंत्री या वीआईपी का कार्यक्रम होता है, तब अन्य जिलों से अतिरिक्त सुरक्षा बल मंगाना पड़ता है। यह तथ्य जिले की जमीनी सच्चाई को उजागर करता है कि नवगठित जिले में अब तक स्थायी रूप से पर्याप्त बल की व्यवस्था नहीं की गई।


जिम्मेदारी किसकी? सवाल खड़े


कानून व्यवस्था बनाए रखने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी पुलिस और आबकारी विभाग की होती है, लेकिन इन विभागों को पर्याप्त सुरक्षा बल उपलब्ध कराना सत्ताधारी राज्य सरकार और मंत्रिमंडल की सीधी जिम्मेदारी है।

साथ ही जिला पुलिस अधीक्षक (एसपी) और कलेक्टर का भी यह दायित्व बनता है कि वे महिला व पुरुष सुरक्षा बलों की कमी का स्पष्ट प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेजें और उसकी स्वीकृति सुनिश्चित कराएं।


हैरानी की बात यह है कि जिले में अब तक कई पुलिस अधीक्षक पदस्थ रहे, लेकिन दो वर्षों में न तो नई भर्तियां बढ़ीं और न ही अतिरिक्त बल की ठोस पहल हुई, जिससे यह समस्या लगातार बनी हुई है।


नई एसपी से उम्मीद


अब उम्मीद की जा रही है कि जिले में हाल ही में पदस्थ नई पुलिस अधीक्षक इस गंभीर कमी को प्राथमिकता से लेते हुए राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजेंगी, ताकि चिरमिरी जैसे बड़े शहरी क्षेत्र में सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाई जा सके और अपराध व अवैध गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सके।


बेरोजगारी और सुरक्षा—दोनों का समाधान संभव


यदि पुलिस और आबकारी विभाग में नई भर्तियां या अतिरिक्त बल की स्वीकृति दी जाती है, तो इससे एक ओर स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा, वहीं दूसरी ओर शहर में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होगी और अपराध नियंत्रण में भी वास्तविक सुधार आएगा।


अंतिम सवाल


सबसे बड़ा सवाल यही है कि चिरमिरी की इस सुरक्षा बदहाली की जवाबदेही कौन लेगा—सत्ताधारी राज्य सरकार, मंत्रिमंडल, स्थानीय मंत्री या जिला प्रशासन?

यदि समय रहते इस गंभीर कमी को दूर नहीं किया गया, तो आने वाले दिनों में चिरमिरी में अपराधों पर नियंत्रण और आम नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और भी कठिन हो जाएगा।

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