विनोद कुमार पांडे ब्यूरो चीफ
चिरमिरी में 30 लाख की इलेक्ट्रॉनिक शवदाह मशीन 7 साल से कबाड़ में तब्दील — ‘स्वर्ग से सुंदर पार्क’ के दावों के बीच कड़वी हकीकत उजागर
चिरमिरी।
शहर के बीचों-बीच एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जिसने नगर निगम की कार्यप्रणाली और ज़िम्मेदारियों पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। नगर निगम के दावों—“स्वर्ग से सुंदर पार्क, आधुनिक सुविधाएँ”—के ठीक उलट, DMF मद से 30 लाख की लागत से बनाई गई इलेक्ट्रॉनिक शवदाह मशीन पिछले सात वर्षों से एक बंद कमरे में सड़ रही है।2019 में कांग्रेस शासनकाल के दौरान तत्कालीन महापौर व डमरू रेड्डी की पहल पर इस मशीन का भव्य लोकार्पण हुआ था। नाम पट्टिकाएँ चढ़ीं, फोटो खिंचे, उद्घाटन हुआ… लेकिन हैरानी की बात यह कि मशीन एक बार भी नहीं चलाई गई।
मुक्तिधाम परिसर में बने विशेष कमरे में रखी यह इलेक्ट्रॉनिक शवदाह मशीन
समय के साथ ‘सरकारी उपेक्षा’ का शिकार होती गई।
कमरे में न चौकीदार नियुक्त किया गया,
न मशीन का नियमित रखरखाव,
न किसी engineer/technical टीम ने इसकी स्थिति जांचने की ज़हमत उठाई।
धीरे–धीरे पार्ट्स चोरी होने लगे,
रूम के बोर्ड, फ्यूज़, वायरिंग, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम तक उखाड़ लिए गए।
आज हालत यह है कि लाखों की मशीन अधमरी होकर कबाड़ के ढेर जैसी बची है
क्या सिर्फ कांग्रेस कार्यकाल की जिम्मेदारी? वर्तमान सरकार की उदासीनता भी उतनी ही बड़ी वजह
स्थानीय लोगों का साफ सवाल—
“अगर कांग्रेस शासनकाल में मशीन बनाकर छोड़ दी गई,
तो क्या वर्तमान सरकार की रखरखाव या चालू कराने की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती?”
बीते 7 वर्षों में किसी भी सरकार ने इसे चलाने या सुधारने की कोशिश नहीं की।
निगम प्रशासन भी इस मामले में पूरी तरह उदासीन नज़र आता है।
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कम राजस्व वाले चिरमिरी में सरकारी धन की बड़ी बर्बादी
चिरमिरी नगर निगम वैसे ही कम राजस्व वाला क्षेत्र माना जाता है,
जहाँ किसी भी फंड का मिलना बड़ी बात होती है।
लेकिन इंजीनियरिंग विंग, निगम प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की लापरवाही ने
30 लाख के सरकारी धन को बर्बादी की कगार पर ला खड़ा किया।
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मशीन चालू हो जाती तो—लकड़ी की बचत, पर्यावरण संरक्षण और रोजगार मिलता
विशेषज्ञों के अनुसार,
यदि यह इलेक्ट्रॉनिक शवदाह मशीन शुरू कर दी जाती तो—
लकड़ी की भारी बचत होती,
अंतिम संस्कार का समय कम लगता,
धुएँ में कमी से पर्यावरण को राहत मिलती,
मशीन संचालन के लिए स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलता।
लेकिन आज स्थिति बिल्कुल उलट है—
मशीन बंद… प्रशासन चुप… और जनता की आँखें भी मूंद दी गई हैं।
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DMF मद से निर्मित
लागत : 30 लाख रुपये
लोकार्पण वर्ष : 2019 (कांग्रेस शासनकाल, डमरू रेड्डी की पहल)
7 वर्षों से बंद और बेकार
पार्ट्स चोरी, मशीन जर्जर
निगम का कोई रखरखाव नहीं
वर्तमान सरकार की भी उदासीनता
चालू होने पर—पर्यावरण, समय, लकड़ी और रोजगार—सभी में लाभ


