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बाराबंकी: मौत का बाज़ार बना आस्था हॉस्पिटल: मामूली बीमारी में ऑपरेशन और फिर मौत, सिस्टम खामोश

 क्राइम ब्यूरो _ मोहम्मद अहमद 

जिला बाराबंकी 

मौत का बाज़ार बना आस्था हॉस्पिटल: मामूली बीमारी में ऑपरेशन और फिर मौत, सिस्टम खामोश


बाराबंकी। इलाज के नाम पर मौत बेचने का सिलसिला आखिर कब रुकेगा?आस्था हॉस्पिटल फिर एक बार चर्चा में हैं—इस बार भी लापरवाही और संदिग्ध इलाज के चलते एक नौजवान की जान चली गई। मृतक युवक का नाम गुफरान है, जिसे शनिवार को सिर्फ गले और नाक की मामूली दिक्कत में भर्ती किया गया था। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टरों ने बिना समुचित जांच के सीधे ऑपरेशन कर डाला। ऑपरेशन के बाद गुफरान की तबीयत अचानक बिगड़ गई और रविवार दोपहर उसकी मौत हो गई। गुस्साए परिजनों ने अस्पताल में हंगामा किया। उनका आरोप है कि आस्था हॉस्पिटल के लिए मरीज महज 'कमाई का जरिया' हैं। परिजनों का कहना है—"गुफरान की हालत सामान्य थी, लेकिन हॉस्पिटल ने उसे 'केश कलेक्शन' का केस बना दिया। इलाज नहीं किया, मौत बेच दी।" कितनी बार दोहराई जाएगी यही कहानी? यह पहली बार नहीं है जब आस्था हॉस्पिटल पर लापरवाही के गंभीर आरोप लगे हों। इससे पहले भी दर्जनों बार फर्जीवाड़े, गलत इलाज और संदिग्ध मौतों के मामले सामने आ चुके हैं। लेकिन हर बार 'प्रशासनिक रसूख' की छतरी तले सबकुछ दबा दिया जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि हॉस्पिटल के कर्ताधर्ताओं की पकड़ ऊपर तक है। इसलिए कितनी भी बड़ी घटना हो, न तो जांच पूरी होती है, न सज़ा मिलती है। "ये सिर्फ गुफरान की मौत नहीं है, ये सिस्टम की चुप्पी की भी मौत है। आखिर कब तक यूं ही चलता रहेगा 'मौत का धंधा'?" पुलिस ने फिर वही रटी-रटाई कार्रवाई का भरोसा दिया। लेकिन सवाल ये है—क्या इस बार भी फाइलों में बंद होकर रह जाएगी एक और मौत की ये कहानी?मुख्य बिंदु : मामूली बीमारी में ऑपरेशन की सलाह, युवक की मौत, परिजनों का आरोप—'इलाज के नाम पर मौत का कारोबार' प्रशासनिक चुप्पी पर उठे सवाल—कब तक चलेगा ये खेल?

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