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क्रोध: दो मिनट की आग, जिंदगी भर की सजा

 नेशनल हेड लीगल एडवाइजर अधिवक्ता राजेश कुमार की कलम से

 एंकर। क्रोध: दो मिनट की आग, जिंदगी भर की सजा

क्रोध एक ऐसी आग है, जो पलभर में भड़कती है और जीवन को राख कर देती है। भारत की जेलों में ऐसे असंख्य कैदी हैं, जिन्होंने महज दो मिनट के गुस्से में ऐसी गलतियां कीं, जिन्होंने उनकी पूरी जिंदगी को सलाखों के पीछे धकेल दिया। ये कैदी न तो अब दुनिया की रंगत देख पाते हैं, न अपने परिवार की मुस्कान। उनके सामने बस चार दीवारें और अंधेरा है। इस आर्टिकल में हम बात करेंगे उन कैदियों की, जिन्होंने क्रोध के एक पल में अपने जीवन को बर्बाद कर लिया और उनसे मिलने वाली सीख, जो हमें संयम की राह दिखाती है।

क्रोध का वह पल, जो जिंदगी बदल देता है

जरा सोचिए, एक व्यक्ति गुस्से में आकर क्या-क्या कर सकता है? कोई छोटी-सी बात पर किसी की हत्या कर देता है, कोई बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में लिप्त हो जाता है, तो कोई डकैती, चोरी या छिनझपटी जैसे कृत्य कर बैठता है। ये सभी अपराध, जो महज कुछ पलों के आवेश में किए जाते हैं, कैदियों को जेल की सलाखों के पीछे ले जाते हैं। भारत में तिहाड़, यरवदा, या अन्य जेलों में हजारों कैदी ऐसी सजा काट रहे हैं, जिनका कारण उनका वह एक पल का गुस्सा था।

उदाहरण के लिए, एक युवक, जिसका पड़ोसी से झगड़ा हुआ। गुस्से में उसने चाकू उठाया और पड़ोसी की जान ले ली। उस पल में उसे लगा कि वह अपनी ताकत दिखा रहा है, लेकिन आज वह तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा है। उसे अब समझ आता है कि अगर उसने उस पल में संयम बरता होता, तो शायद वह अपने बच्चों के साथ घर में हंस रहा होता।

जेल की चार दीवारें और आत्मचिंतन

जब कैदी जेल की उन चार दीवारों के बीच अकेले होते हैं, तब उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। कुछ को 5 साल, कुछ को 20 साल, कुछ को उम्रकैद, तो कुछ को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी होती है। ये कैदी जब अपने अतीत पर नजर डालते हैं, तो उन्हें लगता है कि काश, उन्होंने उस एक पल में गुस्से पर काबू पाया होता।

भारत की जेलों में कई कैदियों की कहानियां ऐसी हैं। एक कैदी, जिसने सड़क पर हुए झगड़े में किसी को मार डाला, आज कहता है, "मुझे नहीं पता था कि मेरे गुस्से की कीमत मेरी पूरी जिंदगी होगी।" एक अन्य कैदी, जिसने चोरी के बाद हिंसा का रास्ता चुना, अब पछताता है कि उसने एक छोटी-सी लालच के लिए अपनी आजादी खो दी।

क्रोध: इंसान का सबसे बड़ा शत्रु

कहा जाता है कि क्रोध इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है। यह न केवल रिश्तों को तोड़ता है, बल्कि जिंदगी को भी बर्बाद कर देता है। क्रोध में लिया गया एक गलत फैसला न सिर्फ उस व्यक्ति को, बल्कि उसके परिवार को भी दुखों के भंवर में डाल देता है। जेल की सलाखों के पीछे बैठा कैदी न तो अपने बच्चों को स्कूल जाते देख पाता है, न माता-पिता की सेवा कर पाता है। उसकी दुनिया सिर्फ चार दीवारों तक सिमट जाती है।

संयम: एकमात्र रास्ता

इन कैदियों की कहानियां हमें एक महत्वपूर्ण सबक देती हैं—संयम ही वह कुंजी है, जो हमें क्रोध की आग से बचा सकती है। अगर हम गुस्से के उस पल में रुककर सोचें, गहरी सांस लें, या उस स्थिति से खुद को अलग कर लें, तो शायद हम उन गलतियों से बच सकते हैं, जो जिंदगी को बर्बाद कर देती हैं।

ध्यान, योग, और आत्म-नियंत्रण की तकनीकें हमें क्रोध पर काबू पाने में मदद कर सकती हैं। साथ ही, हमें यह समझना होगा कि हर झगड़ा या बहस जिंदगी का अंत नहीं है। छोटी-छोटी बातों को दिल से लगाने के बजाय, हमें उन्हें भूलकर आगे बढ़ना चाहिए।

निष्कर्ष

जेल की सलाखों के पीछे बैठे कैदियों की कहानियां हमें चेतावनी देती हैं कि क्रोध का एक पल हमारी पूरी जिंदगी को तबाह कर सकता है। चाहे वह हत्या हो, चोरी हो, या कोई अन्य अपराध, इन सबके पीछे अक्सर वही दो मिनट का गुस्सा होता है, जो हमें हमारा विवेक खोने पर मजबूर कर देता है। इसलिए, आइए हम संयम का दामन थामें और क्रोध को अपने जीवन का हिस्सा न बनने दें। क्योंकि जिंदगी अनमोल है, और इसे चार दीवारों में कैद होने से बचाना हमारी जिम्मेदारी है।

सीख: गुस्से पर काबू पाएं, जिंदगी को आजादी से जिएं।

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