विशेष खबर नेशनल हेड अधिवक्ता राजेश कुमार की क़लम से
शीर्षक: भारत में गोदी मीडिया और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ: स्वतंत्रता की हत्या?भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, वहां मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। इसकी भूमिका सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने, सत्य को जनता तक पहुंचाने और समाज में जागरूकता फैलाने की रही है। लेकिन हाल के वर्षों में, खासकर 2014 के बाद, भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा "गोदी मीडिया" के रूप में बदनाम हो गया है। यह शब्द, जो पत्रकार रवीश कुमार द्वारा लोकप्रिय हुआ, उन मीडिया संस्थानों को संदर्भित करता है जो सरकार की नीतियों का अंध समर्थन करते हैं, सवाल उठाने से परहेज करते हैं, और सत्ताधारी दल के एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए सनसनीखेज और भ्रामक खबरें परोसते हैं। हाल ही में "ऑपरेशन सिंदूर" को लेकर मीडिया की भूमिका ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है, जिससे सवाल उठता है: क्या भारत में मीडिया अब स्वतंत्र है, या यह सरकार का महज एक प्रचार तंत्र बनकर रह गया है?गोदी मीडिया का उदय और इसका स्वरूप"गोदी मीडिया" शब्द का अर्थ है वह मीडिया जो सत्ता की गोद में बैठकर पत्रकारिता के सिद्धांतों को ताक पर रख देता है। यह शब्द 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सत्ता में आने के साथ प्रचलित हुआ, जब कई प्रमुख मीडिया संस्थानों ने सरकार की नीतियों का खुलकर समर्थन शुरू किया। ये संस्थान न केवल सरकार की उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, बल्कि विपक्ष की आलोचना, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, और फर्जी खबरों के प्रसार में भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, "ऑपरेशन सिंदूर" को लेकर मीडिया ने जिस तरह की कवरेज की, वह इसकी पक्षपातपूर्ण प्रवृत्ति को उजागर करता है। कई चैनलों ने बिना सत्यापन के झूठे वीडियो और अतिशयोक्तिपूर्ण दावे प्रसारित किए, जैसे कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कई शहरों पर कब्जा कर लिया या कराची बंदरगाह को नष्ट कर दिया। ऐसी खबरें न केवल जनता को गुमराह करती हैं, बल्कि राष्ट्रवादी उन्माद भड़काकर सरकार की छवि को चमकाने का काम करती हैं। केंद्रीय मंत्री अश्वनी वैष्णव द्वारा इन चैनलों की प्रशंसा किए जाने पर आलोचकों ने इसे सरकार और मीडिया के बीच साठगांठ का सबूत बताया।ऑपरेशन सिंदूर: गोदी मीडिया का नया अध्याय"ऑपरेशन सिंदूर," जिसे भारत सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ एक सैन्य कार्रवाई के रूप में प्रस्तुत किया, ने मीडिया की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए। इस ऑपरेशन की जानकारी सर्वदलीय बैठक में सभी दलों को दी गई, और कई नेताओं ने इसका समर्थन भी किया। लेकिन मीडिया ने इसे एक राजनीतिक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया। कुछ चैनलों ने फर्जी वीडियो और अतिरंजित दावों के जरिए जनता में उन्माद पैदा किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि उनका मकसद सत्य की खोज नहीं, बल्कि सरकार की छवि को मजबूत करना था। ऐसी कवरेज का एक बड़ा खतरा यह है कि यह जनता के बीच भय और घृणा का माहौल बनाता है। जब मीडिया बिना तथ्यों की जांच किए सनसनीखेज खबरें चलाता है, तो यह न केवल पत्रकारिता के पेशे को कलंकित करता है, बल्कि समाज में ध्रुवीकरण और हिंसा को भी बढ़ावा देता है।मीडिया की स्वतंत्रता पर खतराभारत में प्रेस की स्वतंत्रता संवैधानिक रूप से संरक्षित है, लेकिन वास्तव में यह कई चुनौतियों का सामना कर रही है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रिंग लगातार गिर रही है, जो चिंताजनक है। गोदी मीडिया के उदय के पीछे कई कारर हैं:राजनीतिक दबाव: सरकारी विज्ञापन, लाइसेंसिंग, और नियामक कार्रवाइयों के जरिए मीडिया संस्थानों पर दबाव डाला जाता है।कॉरपोरेट स्वामित्व: बड़े कॉर्पोरेट घरानों द्वारा मीडिया का स्वामित्व स्वतंत्र पत्रकारिता को सीमित करता है।आर्थिक निर्भरता: सरकारी विज्ञापनों पर निर्भरता के कारण कई संस्थान सत्ता के खिलाफ सवाल उठाने से बचते हैं।ट्रोल आर्मी: सोशल मीडिया पर ट्रोल्स और भाड़े के प्रचारक सरकार-समर्थक नैरेटिव को बढ़ावा देते हैं, जो मुख्यधारा के मीडिया को और प्रभावित करता है।गोदी मीडिया का प्रभावगोदी मीडिया का समाज और लोकतंत्र पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है:विश्वसनीयता का हास: जनता का मीडिया पर भरोसा कम हो रहा है। लोग अब समाचारों को मनोरंजन के रूप में देखने लगे हैं।ध्रवीकरण: सांप्रदायिक और राजनीतिक मुद्दों पर एकतरफा कवरेज समाज को बांटने का काम करती है।लोकतंत्र का कमजोर होना: जब मीडिया सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने के बजाय उसका प्रचार करता है, तो लोकतंत्र कमजोर होता है।क्या है समाधान?मीडिया की स्वतंत्रता को बहाल करने के लिए कुछ कदम जरूरी हैं:स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा: स्वतंत्र पत्रकारों और छोटे मीडिया प्लेटफॉर्म्स को समर्थन देना चाहिए।पारदर्शिता: मीडिया संस्थानों को अपने फंडिंग स्रोतों और स्वामित्व को सार्वजनिक करना चाहिए।जनता की जागरूकता: जनता को फर्जी खबरों और पक्षपातपूर्ण कवरेज के प्रति जागरूक करना जरूरी है।नियामक सुधार: सरकारी विज्ञापनों और लाइसेंसिंग में पारदर्शिता लाकर राजनीतिक दबाव को कम किया जा सकता है।संसदीय जांच: गोदी मीडिया की जवाबदेही तय करने के लिए संसद और जनता को जांच की मांग करनी चाहिए।निष्कर्ष"गोदी मीडिया" भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है। "ऑपरेशन सिंदूर" जैसे मामलों में इसकी पक्षपातपूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना कवरेज ने साबित कर दिया है कि यह सत्य की खोज के बजाय सत्ता की सेवा में लिप्त है। अगर भारत को अपने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को बचाना है, तो मीडिया को स्वतंत्र, निष्पक्ष, और जवाबदेह बनाना होगा। यह न केवल पत्रकारिता के लिए, बल्कि देश के भविष्य के लिए भी जरूरी है। जनता, पत्रकारों, और नीति-निर्माताओं को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा, ताकि मीडिया फिर से लोकतंत्र का सच्चा प्रहरी बन सके