जामताड़ा में संथाल परगना स्थापना दिवस पर सिदो – कान्हू को श्रद्धांजलि, आंदोलनकारियों ने किया माल्यार्पण
संवाददाता शेख शमीम
जामताड़ा: झारखंड अलग राज्य आंदोलनकारी जामताड़ा जिला समिति की ओर से सोमवार को 170वां संथाल परगना स्थापना दिवस श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया गया। इस अवसर पर जिले के विभिन्न स्थानों से पहुंचे आंदोलनकारियों ने वीर सपूत सिदो–कान्हू मुर्मू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया और उनके बलिदान को याद किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए झारखंड अलग राज्य आंदोलनकारी रोबिन मिर्धा ने संथाल परगना स्थापना के ऐतिहासिक महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान जब सिदो – कान्हू सहित अन्य आदिवासी वीरों को गिरफ्तार किया गया, तब अंग्रेज शासकों ने उनसे पूछा कि वे क्या चाहते हैं। इस पर सिदो – कान्हू मुर्मू ने स्पष्ट कहा कि वे न तो भागलपुर में रहेंगे और न ही बंगाल में, बल्कि उन्हें अलग संथाल परगना चाहिए। उनके इसी संघर्ष और बलिदान के परिणामस्वरूप 21 दिसंबर 1855 को अध्यादेश बनाया गया और 22 दिसंबर 1855 को संथाल परगना की आधिकारिक घोषणा की गई।रोबिन मिर्धा ने अपने संबोधन में आंदोलन के दौरान हुई दर्दनाक घटनाओं का भी जिक्र किया।उन्होंने कहा कि संथाल हूल के दौरान कई स्थानों पर आदिवासियों को अमानवीय यातनाएं दी गईं, जिनमें पाकुड़ जिले का काटा पोखर क्षेत्र एक दर्दनाक घटना स्थल के रूप में इतिहास में दर्ज है। कार्यक्रम में ननोरथ मरांडी, अनिल सोहेनू, जितेन हांसदा, जयसिंह हेम्ब्रम सहित कई वरिष्ठ आंदोलनकारियों ने भी अपने विचार रखे और सिदो–कान्हू के संघर्ष से प्रेरणा लेने का आह्वान किया। वहीं आंदोलनकारियों में काली मरांडी, जमाल अंसारी, नरेश मिर्धा, चंचल सरखेल, भगमान हेम्ब्रम सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।
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