डकैतों के दौर में बना चमरौहां रपटा आज भी उम्मीदों का सहारा, सिस्टम की अनदेखी से टूटा जनजीवन
स्पेशल रिपोर्ट - पंकज तिवारी, TTN24 न्यूज़
चित्रकूट जनपद के मानिकपुर क्षेत्र में बरदहा नदी पर बना चमरौहां रपटा विकास की अनसुनी आवाज़ और सरकारी उपेक्षा का प्रतीक बन चुका है। यह रपटा वर्ष 2003 के आसपास उस दौर में बना था, जब पूरा इलाका दस्यु ददुआ के आतंक के साये में था। लेकिन हैरत की बात ये है कि डकैतों के खौफ वाले उस जंगलराज में बना यह रपटा आज भी मजबूती से खड़ा है, जबकि आज के जमाने में करोड़ों की लागत से बने पुल और सड़कें पहली बारिश में बह जाती हैं।यह रपटा चमरौहां सहित कई गांवों को न केवल एक-दूसरे से, बल्कि पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश से भी जोड़ता है। ग्रामीणों के लिए यही एकमात्र संपर्क मार्ग है, लेकिन हर साल बरसात के दिनों में यह रपटा जलमग्न हो जाता है। तेज बहाव के कारण आवागमन पूरी तरह ठप हो जाता है और कई बार बीमार लोग इलाज के अभाव में अपने ही घर में दम तोड़ देते हैं।शनिवार की ही एक दर्दनाक तस्वीर ने व्यवस्था की संवेदनहीनता को फिर उजागर कर दिया, एक गर्भवती महिला, जिसे पेट में तेज दर्द होने के कारण अस्पताल ले जाना था, उसे ग्रामीणों ने जान हथेली पर रखकर तेज बहाव में इसी रपटे से पार कराया। क्योंकि उस पार किसी प्रकार की स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं है और पांच दिन बीत जाने के बावजूद कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी प्रशासन की तरफ से नहीं की गई।
इसी के साथ एक और चौंकाने वाला उदाहरण सामने आया है, चित्रकूट में 40 करोड़ की लागत से बनी भौंरी से पहाड़ी को जोड़ने वाली निर्माणाधीन सड़क बारिश में धंस गई, और एक ट्रक पलट गया। करोड़ों की लागत के बावजूद यह सड़क पहली बारिश भी नहीं झेल सकी, वहीं जंगलराज में बनी चमरौहां की यह रपटा दो दशकों से डटा हुआ है।
सबसे दुखद पहलू यह है कि इस स्थान पर दशकों से एक पक्के पुल की मांग की जा रही है, लेकिन आज तक न तो किसी सरकार ने संज्ञान लिया और न ही किसी जनप्रतिनिधि ने ठोस कदम उठाया। सिर्फ वादे होते हैं, घोषणाएं होती हैं, लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं होता।
ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है, असली डकैत कौन? वो जो जंगलों में रहते हुए भी कुछ बना गए, या फिर वो जो शहरों में बैठकर जिम्मेदारी निभाने का दावा करते हैं लेकिन एक पुल और एक टिकाऊ सड़क तक नहीं बनवा पाए?
चमरौहां का रपटा आज न सिर्फ एक संपर्क मार्ग है, बल्कि व्यवस्था की विफलता पर खड़ा एक कठोर सवाल है, जो हर बारिश के साथ और ऊंचा हो जाता है।