नेशनल हेड लीगल एडवाइजर अधिवक्ता राजेश कुमार के कलम से
एंकर। इस कलयुग में भी ऐसे नेता होते हैं जो बिना कुछ शोरगुल के कुछ बड़े काम कर जाते हैं आज के समय में ऐसे नेता हैं जो बिना शोर-शराबे के काम करते हैं, और राहुल गांधी को इसका एक उदाहरण माना जा सकता है।राहुल गांधी ने दशरथ मांझी के परिवार से मुलाकात की और उनके लिए एक नया घर बनवाया, बिना किसी प्रचार के।
यह कदम दशरथ मांझी की तरह चुपचाप समर्पण दिखाता है, जो आज के राजनीतिज्ञों में दुर्लभ है।
कुछ लोग इसकी आलोचना कर सकते हैं, लेकिन साक्ष्य इस दिशा में इशारा करते हैं कि राहुल गांधी ने वास्तविक मदद की है।
राहुल गांधी का दशरथ मांझी के परिवार के साथ जुड़ाव
राहुल गांधी ने 6 जून 2025 को बिहार के गया जिले में दशरथ मांझी के परिवार से मुलाकात की। यह मुलाकात बिना किसी मीडिया कवरेज के हुई, और उन्होंने परिवार के साथ समय बिताया, उनकी समस्याओं को सुना, और नारियल पानी साझा किया। इसके बाद, उन्होंने दशरथ मांझी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
घर निर्माण का प्रयास
राहुल गांधी ने दशरथ मांझी के परिवार के लिए एक नया पक्का मकान बनवाने का काम शुरू करवाया, जो गहलौर गांव में बन रहा है। यह मकान 4 कमरों, एक छोटे हॉल, एक रसोई, और एक बड़े बाथरूम के साथ 1 कट्ठा जमीन पर बनाया जा रहा है। यह निर्माण बिना किसी प्रचार के शुरू हुआ और बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम की देखरेख में हो रहा है।
राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ
दशरथ मांझी, जिन्हें "पहाड़ का आदमी" के नाम से जाना जाता है, ने 22 साल तक अकेले पहाड़ काटकर एक रास्ता बनाया था, जो उनके गांव के लिए क्रांतिकारी था। हालांकि, उनके परिवार को पहले नेताओं, जैसे नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी, से पर्याप्त मदद नहीं मिली। राहुल गांधी का यह कदम इस संदर्भ में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा सकता है।
राहुल गांधी और दशरथ मांझी की विरासत
परिचय
आज के राजनीतिक परिदृश्य में, जहां नेता अक्सर अपने कार्यों को प्रचारित करने में व्यस्त रहते हैं, दशरथ मांझी जैसे व्यक्तियों की चुपचाप समर्पण की भावना दुर्लभ है। दशरथ मांझी, जिन्हें "पहाड़ का आदमी" के नाम से जाना जाता है, ने बिहार के गया जिले के गहलौर गांव में 22 साल तक अकेले हथौड़ा और छेनी से पहाड़ काटकर एक रास्ता बनाया, जो उनके गांव को नजदीकी शहर से जोड़ने में मददगार साबित हुआ। उनकी यह पहल न केवल उनके गांव के लोगों के लिए सुविधाजनक थी, बल्कि उन्हें देशभर में एक प्रेरणा के रूप में स्थापित किया। हालांकि, उनके परिवार को लंबे समय तक उपेक्षा का सामना करना पड़ा, जिसके खिलाफ राहुल गांधी ने एक सकारात्मक कदम उठाया है।
राहुल गांधी का दौरा और मुलाकात
6 जून 2025 को, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार के गया जिले के दशरथ नगर गांव का दौरा किया, जो दशरथ मांझी के परिवार के निवास स्थान के पास है। इस दौरान, उन्होंने दशरथ मांझी के पुत्र भगीरथ मांझी और उनकी पोती अंशु कुमारी से मुलाकात की। यह मुलाकात बिना किसी मीडिया कवरेज के हुई, जो आज के राजनीतिज्ञों के बीच एक दुर्लभ गुण है। राहुल गांधी ने परिवार के साथ नारियल पानी साझा किया और उनकी आर्थिक कठिनाइयों के बारे में सुना। भगीरथ मांझी ने बताया कि राहुल गांधी ने पूछा कि दशरथ मांझी का घर और पहाड़ काटने का काम कैसे था, और परिवार ने अपनी स्थिति के बारे में बताया, जिसमें उनकी दादी की पहाड़ पार करते समय हुई दुर्घटना और मृत्यु का उल्लेख भी शामिल था।
इस मुलाकात के बाद, राहुल गांधी गहलौर गांव गए और दशरथ मांझी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। यह दौरा बिहार विधानसभा चुनावों से पहले उनकी पहुंच बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा था, लेकिन इसने उनकी विनम्रता और सामाजिक संवेदनशीलता को भी दर्शाया।
घर निर्माण का प्रयास
राहुल गांधी की इस मुलाकात के कुछ ही दिनों बाद, उनके निर्देश पर दशरथ मांझी के परिवार के लिए एक नया पक्का मकान बनाने का काम शुरू हुआ। यह मकान गहलौर गांव में बनाया जा रहा है और इसमें 4 कमरे, एक 8x8 फीट का छोटा हॉल, एक रसोई, और एक बड़ा बाथरूम शामिल है, जो 1 कट्ठा जमीन पर बनाया जा रहा है। इस निर्माण कार्य को बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम की देखरेख में किया जा रहा है, और यह बिना किसी प्रचार के शुरू हुआ, जो राहुल गांधी की वास्तविक मदद की भावना को दर्शाता है।
इस कदम को दशरथ मांझी के परिवार के लिए एक नई शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है, जो लंबे समय से मूलभूत सुविधाओं से वंचित था। परिवार के सदस्यों ने बताया कि पहले कई नेता उनके पास फोटो खिंचवाने और वादे करने आए, लेकिन कोई ठोस मदद नहीं की। राहुल गांधी का यह कदम इस संदर्भ में एक सकारात्मक बदलाव के रूप में उभरता है।
ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भ
दशरथ मांझी की कहानी बिहार और पूरे भारत में एक प्रेरणा के रूप में जानी जाती है। उन्होंने 110 मीटर लंबा, 9.1 मीटर चौड़ा, और 7.7 मीटर गहरा रास्ता बनाया, जो अटरी और वजीरगंज ब्लॉकों के बीच की दूरी को 55 किलोमीटर से घटाकर 15 किलोमीटर कर दिया। उनकी मृत्यु 17 अगस्त 2007 को हुई थी, और बिहार सरकार ने उन्हें राज्य की अंतिम यात्रा दी थी। इसके अलावा, 2006 में उन्हें पद्म श्री पुरस्कार के लिए नामित किया गया था, और 26 दिसंबर 2016 को भारत पोस्ट ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया था।
हालांकि, उनके परिवार को लंबे समय तक उपेक्षा का सामना करना पड़ा। नीतीश कुमार ने गहलौर घाटी का नाम दशरथ मांझी के नाम पर रखा और एक स्मारक बनवाया, साथ ही एक सड़क भी बनवाई, लेकिन परिवार की मूलभूत जरूरतें पूरी नहीं हुईं। जीतन राम मांझी, जो उसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, ने भी कोई विशेष मदद नहीं की। इस संदर्भ में, राहुल गांधी का कदम एक नई उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है।
तुलना और विश्लेषण
दशरथ मांझी की कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो चुपचाप, बिना किसी शोर-शराबे के, अपने गांव के लिए एक क्रांतिकारी काम किया। राहुल गांधी का दशरथ मांझी के परिवार के लिए घर बनवाना और उनकी मुलाकात इस भावना को दर्शाती है। यह आज के राजनीतिज्ञों के बीच एक दुर्लभ गुण है, जहां अधिकतर नेता अपने कार्यों को प्रचारित करने में व्यस्त रहते हैं। हालांकि, कुछ लोग इसकी आलोचना कर सकते हैं कि यह राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन साक्ष्य इस दिशा में इशारा करते हैं कि राहुल गांधी ने वास्तविक मदद की है, जो दशरथ मांझी की तरह समर्पण को दर्शाता है।
निष्कर्ष
राहुल गांधी का दशरथ मांझी के परिवार के साथ जुड़ाव और उनके लिए घर बनवाना एक ऐसा कदम है जो आज के समय में नेताओं में दुर्लभ है। यह दशरथ मांझी की चुपचाप समर्पण की भावना को जीवित रखता है, और यह साबित करता है कि ऐसे नेता अभी भी हैं जो बिना फोटो और शोर-शराबे के काम करते हैं।