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एक पिता की अमर याद: अनिमेष कुमार चौधरी की पुत्र-स्मृति में हर साल 100 आम के पेड़

 लोकेशन बोकारो सिविल कोर्ट से नेशनल हैड अधिवक्ता राजेश कुमार की विशेष रिपोर्ट।   

  एंकर। एक पिता की अमर याद: अनिमेष कुमार चौधरी की पुत्र-स्मृति में हर साल 100 आम के पेड़

बोकारो, 9 सितंबर 2025: इस दुनिया में ऐसा कोई पिता नहीं जो अपने कंधे पर बेटे का सहारा न बनना चाहे। लेकिन जब वही सहारा जीवन की कठोरता में छूट जाता है, तो पिता के हृदय पर क्या गुजरती होगी, यह कल्पना से परे है। फिर भी, दर्द को दर्द न बनने देने की एक अनोखी मिसाल पेश करते हुए बोकारो अधिवक्ता संघ के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अनिमेष कुमार चौधरी ने अपने पुत्र की स्मृति को न केवल जीवित रखा है, बल्कि उसे पर्यावरण की सेवा से जोड़कर एक अनमोल विरासत बना दिया है। हर साल 8 सितंबर को, वे अपने पुत्र की याद में 100 आम के पेड़ लगाते हैं। यह परंपरा न केवल एक पिता की भावुकता का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सामूहिक प्रयास भी। आज, जब दुनिया जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही है, अनिमेष जी का यह योगदान एक प्रेरणा स्रोत बन चुका है। आइए, इस अनोखी कहानी को विस्तार से जानें।

पिता-पुत्र का अटूट बंधन: एक दर्दनाक विदाई

जीवन की किताब में हर पिता का सबसे प्रिय अध्याय उसका पुत्र होता है। अनिमेष कुमार चौधरी, जो बोकारो अधिवक्ता संघ में एक सम्मानित वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में जानी जाती हैं, के जीवन में भी यही सत्य था। उनके पुत्र, जिनका नाम आज भी उनके हृदय की धड़कनों में गूंजता है, उनके जीवन का केंद्रबिंदु थे। एक सामान्य परिवार में पले-बढ़े इस पुत्र ने न केवल पिता के कंधे का सहारा लिया, बल्कि उनके सपनों को भी पंख दिए। लेकिन नियति ने एक क्रूर खेल खेला। कुछ वर्ष पूर्व, एक अप्रत्याशित घटना ने अनिमेष जी को उनके पुत्र से हमेशा के लिए वंचित कर दिया। वह दिन, जब सहारा छूट गया, पिता के जीवन में एक शून्य पैदा कर गया।

सोचिए, एक पिता के ऊपर क्या गुजरती होगी जब वह हाथ जो कभी उसके कंधे पर रखे जाते थे, अब हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं। अनिमेष जी ने कभी इस दर्द को दुनिया के सामने नहीं तोड़ा। वे अदालतों में न्याय की लड़ाई लड़ते रहे, लेकिन अंदर ही अंदर वह स्मृति जलती रही। "भले ही बेटा अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसकी यादें हमें जीने की ताकत देती हैं," एक बार उन्होंने अपने निकटतम सहयोगियों से कहा था। यह दर्द न केवल व्यक्तिगत था, बल्कि इसे सामाजिक स्तर पर बदलने का संकल्प भी जन्मा। अनिमेष जी ने फैसला किया कि वे अपने पुत्र की स्मृति को मृत्यु तक सीमित नहीं रखेंगे, बल्कि इसे जीवनदायिनी बनाएंगे।


8 सितंबर: स्मृति दिवस का अनोखा उत्सव

हर साल 8 सितंबर को, अनिमेष जी का घर और बोकारो अधिवक्ता संघ का परिसर एक विशेष उत्साह से भर जाता है। यह तारीख उनके पुत्र की स्मृति से जुड़ी हुई है – वह दिन जब वे पैदा हुए थे या जब वे इस दुनिया से विदा हुए थे (सटीक विवरण गोपनीय रखा गया है, लेकिन महत्वपूर्ण है भावना)। इस दिन, अनिमेष जी पर्यावरण को शुद्ध करने का संकल्प लेते हैं। "मेरा बेटा अगर जीवित होता, तो वह भी प्रकृति का साथी बनता। इसलिए, मैं उसके नाम पर पेड़ लगाता हूं," वे कहते हैं।

यह परंपरा अब कई वर्षों से चली आ रही है। हर 8 सितंबर को, बोकारो अधिवक्ता संघ के सदस्य, वकील भाई-बहनें, और आम जनता एकत्रित होते हैं। अनिमेष जी के नेतृत्व में 100 आम के पेड़ लगाए जाते हैं। आम का पेड़ क्यों? क्योंकि यह न केवल फल देता है, बल्कि छाया भी। यह पिता-पुत्र के बंधन का प्रतीक है – एक पिता की छाया में बेटा पनपता है, और अब ये पेड़ उस छाया को अमर बनाते हैं। पेड़ लगाने का कार्यक्रम संघ के परिसर, आसपास के पार्कों, स्कूलों और सामुदायिक स्थानों पर होता है। मटके में पानी डालना, मंत्रोच्चार के साथ रोपण – सब कुछ एक यादगार समारोह की तरह होता है।

इस वर्ष, 8 सितंबर 2025 को भी यही दृश्य देखने को मिला। सैकड़ों लोग जुटे, और 100 नए आम के पेड़ धरती मां की गोद में समर्पित किए गए। अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष ने कहा, "अनिमेष जी का यह प्रयास हमें सिखाता है कि दर्द को दान में बदल दिया जाए।" आम लोग भी इसमें शरीक होते हैं – किसान, छात्र, महिलाएं। हर पेड़ के साथ एक छोटा सा कार्ड लगाया जाता है, जिसमें लिखा होता है: "अनिमेष चौधरी जी के पुत्र की स्मृति में।" यह न केवल स्मृति को जीवित रखता है, बल्कि पर्यावरण को हरा-भरा भी बनाता है।

पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक एकता: एक दोहरा लाभ

अनिमेष जी का यह प्रयास केवल व्यक्तिगत स्मृति तक सीमित नहीं है। यह पर्यावरण संरक्षण की एक बड़ी पहल है। बोकारो, जो औद्योगिक शहर होने के कारण प्रदूषण की चपेट में है, के लिए आम के पेड़ वरदान साबित हो रहे हैं। आम के पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं, ऑक्सीजन देते हैं, और फल प्रदान करके आर्थिक लाभ भी। अब तक, कई वर्षों में हजारों पेड़ लग चुके हैं। संघ के सदस्य बताते हैं कि इनमें से कई पेड़ अब फल दे रहे हैं, और जिन घरों या जगहों पर ये लगे हैं, वहां के लोग हमेशा अनिमेष जी के पुत्र को याद रखते हैं।


"मेरे घर में लगा यह आम का पेड़ अनिमेष जी के बेटे की तरह बड़ा हो रहा है। हर बार जब फल तोड़ते हैं, तो प्रार्थना करते हैं कि उनकी आत्मा को शांति मिले," एक स्थानीय निवासी ने कहा। यह पेड़ अब स्मृति के प्रतीक मात्र नहीं, बल्कि एक सामाजिक बंधन बन गए हैं। अधिवक्ता संघ के युवा सदस्यों ने इसे 'पुत्र वृक्ष अभियान' नाम दिया है। इस अभियान में न केवल रोपण होता है, बल्कि पेड़ों की देखभाल भी सुनिश्चित की जाती है। अगर कोई पेड़ मुरझा जाए, तो नया लगाया जाता है। यह दर्शाता है कि अनिमेष जी की स्मृति कितनी मजबूत और जीवंत है।

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे व्यक्तिगत प्रयास बड़े बदलाव ला सकते हैं। बोकारो में बढ़ते प्रदूषण के बीच, ये 100-100 पेड़ सालाना एक हरा कवर जोड़ रहे हैं। अनिमेष जी कहते हैं, "मेरा पुत्र अगर देखता, तो गर्व करता। पर्यावरण शुद्ध हो, तो उसकी स्मृति भी शुद्ध रहेगी।" यह अभियान अब अन्य शहरों के वकील संघों को भी प्रेरित कर रहा है। कुछ जगहों पर इसी तरह की पहल शुरू हो चुकी है, जहां व्यक्तिगत स्मृतियों को पर्यावरण से जोड़ा जा रहा है।


एक पिता के लिए इससे बेहतर क्या? अमर विरासत की कहानी

एक पिता के लिए सबसे बड़ा दर्द बेटे का चले जाना है, लेकिन अनिमेष कुमार चौधरी ने इसे एक अमर विरासत में बदल दिया। वे कहते हैं, "भले ही बेटा शारीरिक रूप से हमारे साथ नहीं है, लेकिन ये पेड़ उसके माध्यम से जीवित हैं। हर पत्ता, हर फल उसकी याद दिलाता है।" जिन-जिन घरों, स्कूलों या पार्कों में ये आम के पेड़ लगे हैं, वहां के लोग अनिमेष जी के पुत्र को हमेशा स्मृतियों में संजोए रखेंगे। बच्चे खेलेंगे इनकी छाया में, परिवार फल खाएंगे, और हर बार सोचेंगे – यह एक पिता की प्रेम-कथा है।

इससे बेहतर एक पिता के लिए क्या हो सकता है? दर्द को दबाने की बजाय, इसे समाज के लिए उपयोगी बनाना। अनिमेष जी का जीवन अब एक उदाहरण है – न्याय के क्षेत्र में लड़ाई, और प्रकृति के प्रति समर्पण। बोकारो अधिवक्ता संघ ने उन्हें 'पर्यावरण योद्धा' का सम्मान भी दिया है। आने वाले वर्षों में, यह परंपरा और मजबूत होगी। शायद 8 सितंबर अब बोकारो का 'वृक्ष दिवस' बन जाए।

अंत में, अनिमेष जी की यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन की चुनौतियां हमें तोड़ सकती हैं, लेकिन अगर इच्छाशक्ति हो, तो हम उन्हें नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं। उनके पुत्र की स्मृति अब हरे-भरे पेड़ों में बसती है, और एक पिता का प्रेम अमर हो गया है। जय हिंद, जय पर्यावरण!

(यह आर्टिकल श्री अनिमेष कुमार चौधरी जी के प्रयासों पर आधारित है। यदि कोई अतिरिक्त जानकारी हो, तो संघ से संपर्क करें।)

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