Type Here to Get Search Results !
विज्ञापन
    TTN24 न्यूज चैनल मे समस्त राज्यों से डिवीजन हेड - मार्केटिंग हेड एवं ब्यूरो रिपोर्टर- बनने के लिए शीघ्र संपर्क करें - +91 9956072208, +91 9454949349, ttn24officialcmd@gmail.com - समस्त राज्यों से चैनल की फ्रेंचाइजी एवं TTN24 पर स्लॉट लेने लिए शीघ्र सम्पर्क करें..+91 9956897606 - 0522' 3647097

विशेष खबर: इज़राइल-इराक युद्ध, अमेरिका की भूमिका, और भारत की विदेश नीति परिचय

 विशेष खबर विशेष रिपोर्ट अधिवक्ता राजेश कुमार के कलम से।

 टाईटल: इज़राइल-इराक युद्ध, अमेरिका की भूमिका, और भारत की विदेश नीति परिचय

वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में मध्य पूर्व एक बार फिर युद्ध और अस्थिरता का केंद्र बन चुका है। इज़राइल और इराक के बीच बढ़ते तनाव ने न केवल क्षेत्रीय शांति को खतरे में डाला है, बल्कि वैश्विक शक्तियों, विशेषकर अमेरिका, की नीतियों और उनकी भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इज़राइल-इरान युद्ध में युद्धविराम (सीजफायर) की घोषणा और भारत-पाकिस्तान तनाव में मध्यस्थता के दावों ने यह बहस छेड़ दी है कि क्या अमेरिका विश्व में एक "चौधरी" की तरह व्यवहार कर रहा है। इसके साथ ही, भारत की विदेश नीति की प्रभावशीलता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति पर भी सवाल उठ रहे हैं। इस निबंध में हम इन मुद्दों का विश्लेषण करेंगे और भारत की स्थिति क्या होनी चाहिए, इस पर विचार करेंगे।इज़राइल-इराक युद्ध और अमेरिका की भूमिका

इज़राइल और इराक के बीच तनाव की जड़ें ऐतिहासिक, धार्मिक, और भू-राजनीतिक कारकों में निहित हैं। हाल के वर्षों में, इराक में ईरान समर्थित मिलिशिया समूहों की सक्रियता और इज़राइल की क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं ने इस तनाव को बढ़ाया है। इस युद्ध में अमेरिका की भूमिका स्पष्ट रूप से इज़राइल के पक्ष में रही है। डोनाल्ड ट्रंप ने इज़राइल-ईरान युद्ध में युद्धविराम की घोषणा की, जो कुछ घंटों में टूट गया, और उन्होंने इज़राइल को सैन्य समर्थन प्रदान करते हुए ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर आक्रामक रुख अपनाया। अमेरिका का यह रवैया मध्य पूर्व में उसकी लंबे समय से चली आ रही नीति का हिस्सा है, जहां वह इज़राइल को अपने प्रमुख सहयोगी के रूप में देखता है। ट्रंप का दावा कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध को रोका, और उनकी पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर के साथ मुलाकात, यह दर्शाता है कि अमेरिका क्षेत्रीय संघर्षों में मध्यस्थता के नाम पर अपनी प्रभुता स्थापित करने का प्रयास करता है। हालांकि, ट्रंप की नीतियां विरोधाभासों से भरी हैं। एक ओर वे विश्व शांति का दावा करते हैं, दूसरी ओर ईरान पर हमले जैसे कदम उठाते हैं, जिससे क्षेत्रीय तनाव और बढ़ता है। यह प्रश्न उठता है कि क्या अमेरिका विश्व में एक "चौधरी" की तरह व्यवहार कर रहा है? अमेरिका की विदेश नीति में एकतरफा निर्णय और सैन्य हस्तक्षेप की प्रवृत्ति इसे वैश्विक शक्ति के रूप में प्रभावशाली बनाती है, लेकिन यह अन्य देशों की संप्रभुता का सम्मान करने में कमी भी दर्शाती है। भारत-पाकिस्तान और इज़राइल-इराक जैसे संघर्षों में अमेरिका की मध्यस्थता का दावा उसकी भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय संतुलन को अपने हितों के अनुरूप बनाए रखना है।भारत की विदेश नीति: सफलता या असफलता?

भारत की विदेश नीति, विशेषकर नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में, "मल्टी-अलाइनमेंट" और "रणनीतिक स्वायत्तता" पर आधारित रही है। भारत ने अमेरिका, रूस, सऊदी अरब, और ईरान जैसे देशों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने का प्रयास किया है। हालांकि, हाल के घटनाक्रमों, जैसे पहलगाम आतंकी हमले के बाद वैश्विक समर्थन की कमी और अमेरिका द्वारा पाकिस्तानी सेना प्रमुख को दी गई अहमियत, ने भारत की विदेश नीति की प्रभावशीलता पर सवाल उठाए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत कूटनीति, जिसने पिछले दशक में भारत को वैश्विक मंच पर एक मजबूत पहचान दिलाई, अब चुनौतियों का सामना कर रही है। ट्रंप के साथ उनकी गर्मजोशी भरे संबंधों पर निर्भरता ने भारत को कुछ हद तक कमजोर स्थिति में डाला है, क्योंकि ट्रंप की अप्रत्याशित नीतियों ने भारत के हितों को नुकसान पहुंचाया है। उदाहरण के लिए, कश्मीर मुद्दे पर ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश और पाकिस्तान के प्रति उनकी नरमी भारत के लिए असहज स्थिति पैदा करती है। क्या भारत की विदेश नीति नाकाम रही है? यह कहना अतिशयोक्ति होगी। भारत ने QUAD, BRICS, और SCO जैसे मंचों पर अपनी स्थिति को मजबूत किया है और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे वैश्विक संकटों में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की क्षमता दिखाई है। फिर भी, मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव और अमेरिका की एकतरफा नीतियों ने भारत को एक पक्ष चुनने के दबाव में डाला है, जो उसकी रणनीतिक स्वायत्तता के लिए चुनौती है। ट्रंप की "हीरो" छवि और मोदी सरकार का रुख

डोनाल्ड ट्रंप की छवि एक ऐसे नेता की है जो वैश्विक मंच पर निर्णायक और प्रभावशाली दिखना चाहते हैं। भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में उनकी कथित भूमिका और इज़राइल-ईरान युद्ध में सीजफायर की घोषणा उनके इस प्रयास का हिस्सा है। हालांकि, भारत ने ट्रंप के इन दावों को स्पष्ट रूप से खारिज किया है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी, और मोदी ने ट्रंप के अमेरिका आने के निमंत्रण को ठुकरा दिया। यह दर्शाता है कि मोदी सरकार ट्रंप के दबाव में झुकने को तैयार नहीं है। भारत ने कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बताते हुए किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को सिरे से नकार दिया है। यह रुख भारत की संप्रभुता और स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शाता है। फिर भी, इज़राइल-इराक युद्ध में भारत की चुप्पी और मध्य पूर्व में सक्रिय भूमिका की कमी ने यह सवाल उठाया है कि क्या भारत वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है।भारत की स्थिति क्या होनी चाहिए?

इज़राइल-इराक युद्ध और अमेरिका की नीतियों के संदर्भ में भारत को निम्नलिखित रणनीति अपनानी चाहिए:रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखना: भारत को अमेरिका या किसी अन्य शक्ति के दबाव में आकर एक पक्ष चुनने से बचना चाहिए। मध्य पूर्व में भारत के आर्थिक हित, जैसे तेल और गैस की आपूर्ति, सभी पक्षों के साथ संतुलित संबंधों पर निर्भर हैं। मध्यस्थ की भूमिका निभाना: भारत को रूस-यूक्रेन युद्ध में अपनी तटस्थ भूमिका की तरह मध्य पूर्व में भी शांति वार्ता को बढ़ावा देना चाहिए। यह भारत की वैश्विक छवि को एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में मजबूत करेगा।QUAD और BRICS में सक्रियता: भारत को QUAD में अपनी भूमिका को अमेरिकी एजेंडे से स्वतंत्र रखते हुए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाना चाहिए। साथ ही, BRICS और SCO जैसे मंचों पर रूस और चीन के साथ सहयोग को मजबूत करना चाहिए। पाकिस्तान के मुद्दे पर दृढ़ता: भारत को कश्मीर और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर अपनी नीति को और स्पष्ट करते हुए वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने का प्रयास करना चाहिए। ट्रंप की पाकिस्तान के प्रति नरमी के बावजूद, भारत को अपनी स्थिति दृढ़ रखनी होगी। आर्थिक हितों की सुरक्षा: मध्य पूर्व में युद्ध से भारत की तेल आपूर्ति और वहां रहने वाले भारतीयों की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। भारत को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान देना चाहिए और अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए सक्रिय कूटनीति अपनानी चाहिए। निष्कर्ष

इज़राइल-इराक युद्ध और अमेरिका की विदेश नीति ने वैश्विक शक्ति संतुलन को जटिल बना दिया है। अमेरिका की "चौधरी" वाली छवि और ट्रंप की अप्रत्याशित नीतियां भारत के लिए चुनौतियां और अवसर दोनों लेकर आई हैं। भारत की विदेश नीति ने पिछले दशक में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में इसे और अधिक सक्रिय और लचीला होने की आवश्यकता है। मोदी सरकार को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए वैश्विक मंच पर शांति और सहयोग के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। भारत को न केवल अपने आर्थिक और सुरक्षा हितों की रक्षा करनी चाहिए, बल्कि एक उभरती हुई महाशक्ति के रूप में अपनी विश्वसनीयता को भी साबित करना चाहिए।

Advertisement Advertisement

Advertisement Advertisement

Advertisement Advertisement


Advertisement Advertisement
Youtube Channel Image
TTN24 | समय का सच www.ttn24.com
Subscribe