अखिलेश यादव के पास है सलाहकारों का टोटा,राजनीतिक लाभ उठाने से भी रह जाते हैं वंचित?
बसपा सुप्रीमो कांशीराम की पुण्यतिथि मनाने में भी खा गए गच्चा, सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को सच्ची श्रद्धांजलि यह होती कि अखिलेश करते घोषणा कि निजीकरण समाप्त करो, जातिगत जनगणना कराओ, रेल किराए में वृद्धो की सुविधा बहाल करो।
नारी सशक्तिकरण की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यशोदा बेन का सम्मान करो।
सच कहना अगर बगावत है, तो समझो हम भी बागी हैं, जयप्रकाश नारायण के इस क्रांतिकारी नारे से संघ व भाजपा को घेर सकते थे अखिलेश यादव।
अखिलेश यादव ने पी. डी. ए. का निकाला कचूमर, मुसलमानो की लीडरशिप की खत्म, न खुदा ही मिला न विशाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे।
अखिलेश जी देर से आए, दुरुस्त आए जब जागो तब है सवेरा।
आगाज तो अच्छा है अंजाम खुदा जाने।
इटावा: अपने राजनैतिक जीवन में पहली बार अखिलेश यादव और उनकी पार्टी के लोक नायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण न कर पाने के विरोध में सड़कों पर उतरे यह प्रदेश वासियों को अच्छा लगा? अच्छा लगना भी चाहिए। राजनीति में अखिलेश यादव वो नाम है जिसके मुख्यमंत्री बनने से लेकर आज तक पैरों में मेहंदी लगी रही और वह योगी मोदी की जन विरोधी नीतियों के विरोध में कभी भी सड़कों पर संघर्ष करने के लिए नहीं उतरे। स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव जिन्हें धरतीपुत्र भी कहा जाता है, उन्होंने अपने जीते जी, अपनी राजनीति की विरासत अपने बेटे टीपू यानी कि अखिलेश यादव को सन 2012 में सौंप कर उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया था, जिसके कारण उनके संकट मोचक भाई, जिनको मुलायम सिंह जी को शून्य से शिखर तक ले जाने का भी श्रेय दिया जाता है वह शिवपाल सिंह यादव खुद बखुद राजनैतिक हाशिए पर पहुंच गये इसके बाद समाजवादी पार्टी का क्या हश्र हुआ यह सबके सामने है।
देश व प्रदेश में, अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनते ही मरी हुई भाजपा जिंदा हो गई और वह केंद्र व प्रदेश में अखिलेश की बचकानी हरकतों से सत्ता में आ गई है। उन कारणों को देश व प्रदेश के सभी लोग जानते हैं। उन कारणों और घटनाओं का उल्लेख करना अभी यहां पर मुनासिब नहीं है क्योंकि समय पर कही गई बात, बात होती है और समय निकल जाने पर कही गई बात ढाक का पात बन जाया करती है। क्योंकि यह बात तो हर कोई जानता है कि जिन मुलायम सिंह यादव ने अपने अनाड़ी, अपरिपक्व राजनीति में नाबालिक पुत्र अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था उसने जो सबसे पहले नासमझी में जो क्रांतिकारी काम किया था वह था कि उसने अपने वृद्ध पिता से श्री मुलायम सिंह यादव जैसे धरतीपुत्र को मिट्टी में मिला दिया और उन्हें समाजवादी पार्टी से निकाल दिया। इस पुनीत कार्य में अखिलेश यादव का जिस आदमी ने साथ दिया था उस आदमी का नाम है आजम खां सच बहुत कड़वा होता है? इस अन्याय की सजा आजम खान साहब आज भी भुगत रहे हैं। इस अन्याय पूर्ण हरकत की सजा आजम खान आज भी भुगत रहे हैं. आज आजम खान, उनकी बीबी डॉ खनीज फातिमा, उनका होनहार बेटा अब्दुल्लाह आजम खान बेगुनाह होते हुए भी जेल में है इसका अफसोस और दुख हर न्याय प्रिय इंसान को है, लेकिन वह कर भी क्या सकते हैं। आजम खान साहब को ऐसी सजा किस बात की मिली है यह अल्लाह ही जान सकता है लेकिन आजम खान के ऊपर एक-एक करके 100 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हो जाते हैं लेकिन आजम खान जैसे नेता के लिए जिसका अखिलेश यादव की ताजपोशी में सबसे बड़ा हाथ था उसके लिए अखिलेश यादव व उनकी समाजवादी पार्टी ने उनकी बेगुनाही के विरोध में एक भी दिन का न तो विरोध में धारना दिया और न ही प्रदर्शन किया.
हम दावे के साथ कह रहे है भारतीय जनता पार्टी केंद्र व उत्तर प्रदेश में, मोदी व योगी की सरकार बनवाने में अखिलेश यादव के लड़कपन और बचकानेपन की राजनीति का बहुत बड़ा हाथ है, जिसके कारण देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी हैं।
स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव का जन्म तो संघर्ष की कोख से हुआ था और वह संघर्ष पथ राजनीति की बदौलत शून्य से शिखर पर पहुंचे थे। हमें खूब याद है कि अपने राजनैतिक गुरु कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया जिनके शिष्य मुलायम सिंह यादव व सत्यदेव त्रिपाठी जैसे अनगिनत जांबाज सामाजवादी शिष्य थे, डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर सत्याग्रह करके कई बार जेल यात्राएं की उस समय शोसलिष्ट पार्टी ललटूप्पा (लाल टोपी) की फौज के रूप में जानी और पहचानी जाती थी।
अखलेश यादव,डॉ लोहिया कहते थे कि एक पैर रेल में और एक पैर जेल में, मारेंगे भी नहीं और मानेंगे भी नहीं। जिंदा कौमें किसी का पांच साल इंतजार नहीं करती, डॉ लोहिया कहते थे कि जब सड़के सूनी हो जाती हैं तब संसद आवारा हो जाती है। अखिलेश जी आपको याद होना चाहिए कि आपके मुख्यमंत्रित्व काल में मुजफ्फरनगर में भीषण दंगा हुआ मुस्लिम मां,बहन, बेटियों की अस्मतजनी हुई घरों में आग लगाई गई हजारों लोग अपनी जान बचाने के लिए अपना घर बार छोड़कर मुजफ्फरनगर के फुटपाथों पर शरण लेने के लिए मजबूर हुई, स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव ने एक बार नहीं बारंबार कहा कि अखिलेश तुम मुख्यमंत्री हो तुम्हें दंगा पीड़ित मुसलमानो का हाल-चाल जानने के लिए दंगाग्रस्त मुजफ्फरनगर जाना चाहिए लेकिन अखिलेश जी आप नहीं गये? भीषण सर्दी में मुस्लिम समाज के नौनिहाल बच्चे ठिठूर ठिठुर कर दम तोड़ते रहे लेकिन अखिलेश जी आप मुख्यमंत्री होते हुए सैफई महोत्सव में मुंबई की हसीनाओं, अप्सराओं, नचनियों और नरतकियों के डांस देखते रहे यह कैसी विडम्बना रही की आपने दंगा ग्रस्त मुजफ्फरनगर जाना उचित नहीं समझा। वहां अपने भ्राता श्री मुलायम सिंह यादव के आदेश का पालन उनके छोटे शिवपाल सिंह यादव ने किया और वह मुजफ्फरनगर गये, जहां पीड़ित मुस्लिम परिवारों से मिले और उनका हाल-चाल जाना इस नेकी की सजा आज तक शिवपाल सिंह यादव को मिल रही है कि वह बिना आपकी मर्जी के मुजफ्फरनगर क्यूं चले गये। मुलायम सिंह जी दूरदर्शी राजनीतिज्ञ थे उन्होंने अखिलेश यादव को दुबारा मुख्यमंत्री बनवाने के लिए शिवपाल सिंह यादव को मुख्तार अंसारी बंधुओं के पास भेजा और उन्होंने अंसारी बंधुओं की कौमी एकता पार्टी का विलय समाजवादी पार्टी में करा दिया अखिलेश जी यह आपको नागवार गुजरा और आपने एलान कर दिया कि सपा को गुंडे बदमाशों की जरूरत नहीं है। अहंकार की मदहोशी में अखिलेश जी आपने अंसारी बंधुओं का अपमान नहीं किया बल्कि अपने पिता मुलायम सिंह यादव का अपमान किया था जिसकी सजा अखिलेश जी आपको सत्ता से वंचित होने की मिल रही है।
अखिलेश जी आप और सारा देश जानता है कि मुलायम सिंह जी ने गाजीपुर में एक विशाल जनसभा की और उसमें सार्वजनिक रूप से कहा कि मेरा बेटा अखिलेश यादव जिद्दी, अहंकारी और मुस्लिम विरोधी है, उसके बाद भी मुसलमानो ने छाती पर पत्थर रखकर फिरका परस्त भाजपा और उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की डबल इंजन की सरकार को परास्त करने के लिए इंडिया गठबंधन को वोट दिया।
अखिलेश जी यह तो आपकी राजनैतिक करतूतों की बानगी भर है। यहां पर मूल मुद्दे पर लौट आयें। कितने गजब की बात है कि जिन मुसलमानो ने राहुल गांधी और अखिलेश यादव को एक तरफ वोट दिया और भाजपा को हाफ कर दिया है ये नाशुकरे राहुल और अखिलेश अपने मुख और जबान से मुसलमानो तक का नाम नहीं लेते क्या यही तुम लोगों की राजनैतिक ईमानदारी है।
बात अखिलेश यादव की राजनीति की चल रही है, इसलिए अखिलेश यादव के पास राजनीतिक सलाहकारों का टोटा है जिसके कारण वह सामाजिक व राजनैतिक लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं। अखिलेश यादव को पहले से ही मालूम था कि योगी सरकार उन्हें लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण नहीं करने देगी? अखिलेश यादव को पहले से ही एलान कर देना था कि समाजवादी पार्टी जयप्रकाश नारायण की जयंती पर जातिगत जनगणना करने के लिए तथा मोदी ने जो सरकारी विभागों का निजीकरण करके आरक्षण समाप्त करके डॉक्टर अंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान का निरादर किया है उसके विरोध में देशव्यापी आंदोलन की शुरुआत करेगी यह कहकर अखिलेश यादव को सड़कों पर उतर जाना चाहिए था तो इस रणनीति से संघ व भाजपा की चूलें हिल जाती इसके साथ उन्हें नारी सशक्तिकरण की बात करने वाले प्रधानमंत्री को यह कह कर घेरना चाहिए था कि अपनी पत्नी यशोदा बेन को सम्मान नहीं देकर देश की आधी आबादी महिलाओं का अपमान किया हैं,उनके बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे की सार्थकता को आसानी से समझा जा सकता है। अखिलेश जी को कहना चाहिए था कि निजीकरण से मोदी ने रेल सहित सभी प्रमुख विभाग निजी कंपनियों को बेंच दिया है। अब बचा ही क्या है देश को संविधान को और लोकतंत्र को बचाने के लिए देश के किसानों, मजदूरों और बेरोजगार नौजवानों को सड़क पर उतर जाना चाहिए मोदी योगी नफरत फैलाकर देश की इंसानी भाईचारा की भारतीय गंगा जमुनी साझा संस्कृति को तोड़ने का कार्य कर रहे हैं मोदी सरकार महिलाओं के साथ-साथ वृद्ध जनों की शत्रु है इसने जो छूट रेलवे में वृद्धो को किराए में मिलती थी मोदी सरकार ने उसे भी समाप्त कर दिया है। अखिलेश यादव ने बसपा सुप्रीमो मान्यवर कांशीराम को सपा की ओर से उनकी पूण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने का जो अच्छा कार्य किया है उसकी प्रशंसा होनी चाहिए। लेकिन यहां भी अखिलेश यादव गच्चा खा गए और उन्होंने मायावती के पद चिन्हों पर चलते हुए 9 अक्टूबर को कांशीराम जी को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जबकि सच्चाई यह है कि मान्यवर कांशीराम का निधन 8 अक्टूबर को हो गया था जिसे मायावती ने 9 अक्टूबर कर दिया जबकि सारे देश के बसपा मिशनरी साथी 8 अक्टूबर को ही मान्यवर कांशीराम का परिनिर्वाण मना कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देकर उन्हें जगह-जगह श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं यदि अखिलेश यादव ने मान्यवर कांशीराम को 8 अक्टूबर पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए होते तो मायावती अपने आप में ढेर हो जाती।
अखिलेश जी ने जानबूझकर मुस्लिम लीडरशिप खत्म कर दी सपा के कई बड़े मुस्लिम नेता जेल में हैं। मुलायम सिंह यादव जी मुसलमानो को साथ लेकर चलते थे और वह उन्हें सामाजिक व राजनीतिक हिस्सेदारी देते थे जब तक अहमद हसन जी जिंदा रहे वह विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता बनाए गए अखिलेश यादव ने मुसलमानो की यह हिस्सेदारी भी खत्म कर दी यह तो छोड़ो अखिलेश यादव ने दलित, पिछड़ा,अल्पसंख्यक (पी डी ए) का भी कचूमर निकाल कर रख दिया विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाए जाने की चर्चा में सबसे पहला नाम शिवपाल सिंह यादव का था उन्हें पीछे धकेलना के लिए डॉ सोनकर, सरोज व राजभर के नाम चलाए गये लेकिन खोदा पहाड़ निकली चुहिया पी डी ए का कचूमर निकालकर अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पाण्डेय को प्रतिपक्ष का नेता बना दिया पता नहीं अखिलेश ने स्वयं पी डी ए की हत्या क्यों कर दी? माता प्रसाद पाण्डेय प्रतिपक्ष के नेता बने और वह मुलायम सिंह यादव की समाधी पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने गए लेकिन वहां से चंद्र किलोमीटर दूर मुलायम सिंह के अभिन्न साथी करहल नगर पालिका के सपा के चेयरमैन अब्दुल नईम चौधरी के योगी सरकार के बुलडोजरों द्वारा अवैध रूप से ध्वज किए गए मैरिज होम को देखने तक नहीं पहुंचे। प्रतिपक्ष के नेता माता प्रसाद पाण्डेय का यह कृत्य किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता इससे पूत के पैर पालने में ही मालूम पड़ गए।
अखिलेश यादव की यह बात जितनी जल्द समझ में आ जाए वो उनके लिए बेहतर है कि उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव उनके लिए वरदान हैं जब चाचा भतीजे अलग अलग थे तब सामाजवादी पार्टी के ऊपर खतरे के बादल मंडरा रहेथे. और अब साथ साथ है तोमजबूत राजनैतिक सलाहकरों के साथ.बचपना छोड़ संघर्ष करें और समय के अनुसार फैसले लेकर और सत्ता हासिल करें.